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आँखकी किरकिरी।

सवा लाख रुपयेका पारितोषिक (नोवेल प्राइज) प्राप्त करने- वाले कविसम्राट् डा॰ रवीन्द्रनाथके प्रसिद्ध उपन्यासका अनुवाद। अनुवादक, पं॰ रूपनारायण पाण्डेय। मूल्य १॥)

––यह उपन्यास बहुत ही मनोरंजक और सुशिक्षादायक है। समाजके एक अंशविशेषका इसमें जीता जागता चित्र है। "हिन्दीमें इसकी जोड़का एक भी उपन्यास नहीं। इसमें मनुष्यके स्वाभाविक भावोंके चित्र खीच कर उनके द्वारा मित्रकी तरह-आत्माकी तरह शिक्षा दी गई है। इसमें भावोंके उत्थान-पतन और उनकी विकाशशैली वर्षा में पहाड़ों परसे गिरते हुए झरनोंकी तरह बहुत ही मनोहारिणी है। हृदयके स्वाभाविक उदार, छोटी छोटी घटनाओंका बड़ी बड़ी घटनाओके बीच हो जाना और उनके चकित कर देनेवाले परिणाम बड़े ही स्पृहणीय हैं।"

––सरस्वती

 

चौबैका चिट्ठा।

स्वर्गीय बाबू बंकिमचन्द्रके 'कमलाकान्तेर दफ्तर' का अनुवाद।
अनुवादक–पं॰ रूपनारायण पाण्डेय। मू॰॥///)

––मूलग्रंथ जैसा प्रतिभापूर्ण है, वैसा ही उत्तम अनुवाद भी हुआ है। कल्पनाशक्तिका अच्छा उपयोग किया गया है–हास्यरसमय और विनोदपूर्ण है।इसमें सन्देह नहीं कि यह ग्रन्थ हिन्दी साहित्यका एक रत्न समझा जायगा और रसिक विद्वान् इसे चावसे पढ़ेंगे।

––रघुवरप्रसाद द्विवेदी. बी. ए.।

––बंकिम बाबूने बड़ी खूबीसे इसमें सामाजिक बुराइया दिखाई है। कहीं कहीं हास्यरसका विलक्षण मिश्रण भी उन्होंने किया है। अनुवादक महाशयने मूलकी खूबियोंकी रक्षा योग्यतापूर्वक की है। भाषा सरल और शुद्ध है। पुस्तक बड़ी मनोरंजक है और साथ ही शिक्षादायक भी है।

––सरस्वती।

––चौबेका चिट्ठा जैसा चित्ताकर्षक है वैसा ही उपयोगी भी है। इसमें सरलता और उपदेश दोनों है। पढ़नेसे देश और समाजविषयक अनुभव बढ़ता