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है। इसकी शिक्षायें अप्रत्यक्ष होकर भी बड़ी ही मर्मस्पर्शिनी है और यही उसकी महत्ता है। पुस्तक सर्वथा आदरणीय है।

––मैथिलीशरण गुप्त।

––इस ग्रंथ में लेखकने चिदानन्द चौबेका रूप धारण करके भिन्नभिन्न विषयों-पर अपने आन्तरिक भाव प्रकट किये हैं। ईश्वर, प्रकृति, मृत्यु जैसे जटिल विषयोंसे लेकर भारतकी राजनीति, अदालतोंकी जिरह आदि हलके विषयों तककी मनोरंजक व्याख्या इस ग्रन्थमें की गई है। पर वस्तुतः यह एक तरहका गंभीर हास्यरसपूर्ण काव्य है। बंकिम उपन्यास लेखक था, कवि था, दार्शनिक था और विनोदपूर्ण लेखकोंके लिखने में भी सिद्धहस्त था। इस ग्रन्थमें वह अपने सभी रूपों में प्रकट हुआ है।

––सद्धर्मप्रचारक।

 

मितव्ययिता।

डॉ॰ सेमुएल स्माइल्स साहबके 'थिरिफ्ट' का हिन्दी अनुवाद। अनुवादक बाबू दयाचन्द्रजी गोयलीय, बी. ए.।

––बड़ी अच्छी पुस्तक है। हिन्दी साहित्यमें इसे एक रत्न समझना चाहिए। अच्छी छपी है। सुन्दर जिल्द दी हुई है। इस पुस्तकका सार यह है कि मनुष्य अपनी शक्ति, अपने श्रम, अपने उद्योग और अपने धनको स्वार्थपरता और वासनाओंकी तुष्टिमें न लगाकर अच्छे कामों में लगावे। इसके लिए आलस, अविचार, अहंकार, अविवेक, असंयम आदि अनेक अरियोंका सामना करना पड़ता है। इनमेंसे असंयम सबसे बुरा और बड़ा शत्रु है। इस पुस्तकमें इन सब शत्रुओं पर विजय पानेके सैकड़ों उपाय बतलाये गये है। अतएव यह सर्वथा उपादेय है। भाषा भी इसकी अच्छी है; क्लिष्ट नही।

––सरस्वती।

––मितव्ययिता प्रत्येक गृहस्थको पढ़नी चाहिए। यही नहीं, उसके सिद्धान्तों सें लाभ भी उठाना चाहिए। वह इसी योग्य है। उसके वाक्य सोनेके अक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं।

––मैथिलीशरण गुप्त।

––यह पुस्तक सभी के लिए बड़ी उपयोगी है। पाठयपुस्तकोमें इसे अवश्य शामिल करना चाहिए।

––श्रीव्येंकटेश्वर समाचार।