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पृष्ठ:स्वदेश.pdf/३०

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नया और पुराना।

देखते। ब्राह्मण और ब्राह्मणेतर अन्य जातियों के काम-धन्धे में कुछ अन्तर नहीं देख पड़ता। ऐसी अवस्था में ब्राह्मणत्त्व के संकीर्ण धेरे में बंद रहने की कोई सार्थकता या सुभीता नहीं दिखाई देता।

किन्तु इस समय यह हालत है कि ब्राह्मण-धर्म ने केवल ब्राह्मणों को ही नहीं बाँध रक्खा है। जिन शूद्रों के लिए शास्त्र का बन्धन कभी दृढ़ नहीं था, वे भी मौका पाकर उसी घेरे में घुस बैठे हैं। अब वे किसी तरह उस जगह को छोड़ना नहीं चाहते।

पहले समय में ब्राह्मणों ने केवल ज्ञान और धर्म का अधिकार ग्रहण कर रक्खा था। ऐसी दशा में समाज के अनेक छोटे-मोटो कामों का भार शूद्रों पर आ-पड़ना स्वाभाविक ही था[]। इसी कारण उन शूद्रों के ऊपर से आचार-विचार और यन्त्र-तन्त्र के हजारों बन्धन-पाश हटाकर उन्हें बहुत कुछ स्वच्छन्द गति का अवसर दे दिया गया था। पर इस समय एक भारत-व्यापी भारी मकड़ी के जाले में ब्राह्मण से लेकर शूद्र तक, सबके हाथ-पैर बँध गये हैं और वे मुर्दो की तरह निश्चल होकर पड़े हुए हैं। न तो पृथ्वी का काम करते हैं और न परमार्थ-रूप योग ही साधते हैं। पहले जो काम था वह भी बंद हो गया और इस समय जो काम आवश्यक हो पड़ा है उसके होने में भी पगपग पर रुकावटें डाली जाती हैं।

अतएव हमको समझना चाहिए कि इस समय हम जिस, गतिशील संसार में अचानक आ गये हैं उसमें रहकर यदि हमें अपनी प्राणरक्षा और मानरक्षा करनी है तो हर घड़ी साधारण आचार विचारों को लेकर तर्क वितर्क करने से या कपड़ा समेटकर, नाक की नोक सिकोड़कर, बेत-


  1. बंगाल में ब्राह्मण और शूद्र दो ही वर्ण हैं। इसीसे लेखक महाशय ने यहाँ उन्हीं दो का उल्लेख किया है।––अनुवादक।