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स्वदेश–

भारत के सच्चे इतिहास से यही सिद्ध होगा कि पृथ्वी के सारे सभ्यस समाजों में भारतवर्ष ही 'अनेक को एक करने' का आदर्श बनकर विराजमान है। भारत ने अनेक प्रकार की बाधा-विपत्ति और दुर्गति-सुगति में, विश्व में और अपनी आत्मा में, 'एक' का अनुभव करके उस एक को अनेक (विचित्रताओं) में स्थापित किया है––ज्ञान के द्वारा उसका आविष्कार करके, कर्म के द्वारा उसकी प्रतिष्ठा, प्रेम के द्वारा उसकी उपलब्धि और जीवन के द्वारा उसका प्रचार किया है। हम, अपने सच्चे इतिहास में ध्यान लगाकर, जब भारत में इस सनातन भाव का अनुभव करेंगे तभी 'अतीत' के साथ 'वर्तमान' का विच्छेद मिट जायगा।