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नया वर्ष।

णका लड़का भी वयोवृद्ध चमार को काका कहता है। सीमा-रेखा की सहज ही रक्षा होती है; इसीसे हमारे यहाँ छोटे-बड़े में परस्पर जाना-आना और हृदय से हृदय का सम्बन्ध बाधा-हीन है। हमारे यहाँ बड़ों के बेगानेपन का बोझा छोटों की हड्डी-पसली को चूर चूर नहा कर देता। पृथ्वी में यदि छुटपन और बड़ेपन की विषमता अवश्य होने की चीज है, और यदि स्वभावतः सर्वत्र सब प्रकार के छोटों की संख्या ही अधिक और बड़ों की संख्या कम है तो स्वीकार करना होगा कि समाज के इन अधिकांश छोटे लोगों को बेइज्जती की लज्जा से बचाने का जो उपाय भारत ने निकाला है वह बहुत ही श्रेष्ठ है।

यूरोप में इस प्रकार की बेइज्जती का असर इतना फैल गया है कि वहाँ की कुछ नई स्त्रियाँ अपने स्त्री होने को ही लज्जा की बात समझने लगी हैं। गर्भधारण और अपने स्वामी या बालबच्चों की सेवा करने को भी वे लज्जा की––बेइज्जती की बात समझती हैं। यूरोप में इस भाव का जगह ही नहीं मिलती कि मनुष्य बड़ा है; कोई खास काम बड़ा नहीं है; मनुष्यत्व को बनाये रखकर चाहे जो काम किया जाय, उसमें अपमान नहीं है; गरीबी लज्जा की बात नहीं है, सेवा करना लज्जा की बात नहीं है, अपने हाथ से काम करना लज्जा की बात नहीं है; हरएक अवस्था में, हरएक काम, इज्जत के साथ सिर ऊँचा करके किया जा सकता है। यही कारण है कि यूरोप में, जो अधिकारी है वह भी और जो अधिकारी नहीं है वह भी, सभी सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए समाज में अत्यन्त असफलता, अपार व्यर्थ काम और आत्मा की हत्या करनेवाले उद्योग की सृष्टि करते रहते हैं। घर में झाडू देना, जल भरकर लाना, मसाला पीसना और इष्टमित्र अभ्यागत आदि सबकी सेवा और सत्कार करने के बाद अन्त में आप भोजन करना––ये काम यूरोप की