पृष्ठ:स्वदेश.pdf/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५९
नया वर्ष।

गुलामी की बेड़ी में बाँध रखती है। उसकी असंख्य सेना मनुष्यत्व से भ्रष्ट भयानक मेशीन के सिवा और कुछ नहीं है। यह दानवी 'फ्रीडम' किसी समय भारतवर्ष की तपस्या का चरम लक्ष्य नहीं थी। इसका कारण यही है कि हमारे देश के सर्वसाधारण लोग वास्तव में अन्य देशवालों की अपेक्षा स्वाधीन थे। इस समय भी, आधुनिक समय से हमें धिक्कार मिलने पर भी, यह 'फ्रीडम' हमारे देश के लोगों की चेष्टा का चरम लक्ष्य कभी न होगा। यह 'फ्रीडम' हमारे देश के सर्वसाधारण लोगों का चरम लक्ष्य न होगा तो कोई हानि नहीं है। इस फ्रीडम से भी अत्यन्त उन्नत, विशाल और महत्त्वमय, भारतवर्ष के भारी तपका सर्वस्व जो 'मुक्ति' है उसको यदि हम अपने समाज में फिर बुला लावें––अपने हृदय के भीतर ही प्राप्त कर लें––तो भारतवर्ष के नंगे पैरों की धूल से पृथ्वी के बड़े बड़े राजमुकुट पवित्र होंगे।

मैं नये वर्ष के विचारों को यहीं पर समाप्त करता हूँ। आज पुरातन में मैंने प्रवेश किया था, क्योंकि पुरातन ही चिर-नवीनता का अक्षय भाण्डार है। आज वनलक्ष्मी ने नवपल्लवरूपी उत्सव-वस्त्र धारण किये हैं। पर ये वस्त्र आज के नहीं हैं। जिन महाकवि महर्षियो ने त्रिष्टुप् छन्द में तरुणी उषा का वन्दना की है उन्होंने भी इन चिकन मुलायम पीले-हरे वस्त्रों से वनलक्ष्मी को अकस्मात् सजते देखा है। उज्जयिनी पुरी के उद्यान मे, महाकवि कालिदास की मोहित दृष्टि के आगे भी यही वायु-कम्पित पुष्प-गन्ध-पूर्ण वनलक्ष्मी का नव-वस्त्राञ्चल बाल-सूर्य की किरणों से जगमगा उठा है। नवीनता में चिर-पुरातन का अनुभव करने ही से अलख अनन्त जवानी के सागर में हमारा जीर्ण जीवन स्नान कर सकेगा। आज, इस नये वर्ष के दिन में, भारत के कई हजार पुराने वर्षों का अनुभव कर सकने ही से हम लोगों की कमजोरी, लज्जा, लाञ्छना