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ब्राह्मण।

अपने हुक्म पर चलाना है उस पर प्रेस्टिज रखना चाहिए। बोअरों से जब लड़ाई हो रही थी, और उसके आरम्भ ही में अँगरेज साम्राज्य मुट्ठी भर किसानों के हाथ से बार बार अपमानित हो रहा था उस समय अँगरेज लोग भारतवर्ष में जितना संकोच कर रहे थे उतना और कहीं नहीं। उस समय सभी हिन्दुस्तानी समझ रहे थे कि अब अँगरेजों का बूट जूता इस देश में पहले की तरह जोर से नहीं मचमचाता।

हमारे देश में एक समय ब्राह्मणों का भी वैसा ही एक प्रकार का प्रेस्टिज था। क्योंकि समाज-सञ्चालन का भार ब्राह्मणों ही के ऊपर था। जब-सक समाज में उनका प्रेस्टिज था तबतक किसी ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया कि ब्राह्मण लोग ठीक ठीक समाज की रक्षा करते हैं कि नहीं, और समाज की रक्षा करने वाले में जिन जिन निःस्वार्थ श्रेष्ठ गुणों का होना जरूरी है वे उनमें हैं कि नहीं। अँगरेजों के लिए उनका प्रेस्टिज जैसे बहुमूल्य है वैसे ही ब्राह्मणों के लिए उनका प्रेस्टिज भी है।

हमारे देश में समाज का संगठन जिस ढंग से हुआ है उससे समाज को इसकी जरूरत भी है। और इसके आवश्यक होने के कारण ही समाज ने ब्राह्मणों को इतना सम्मान दिया था। हमारे देश का समाजतन्त्र एक विराट् व्यापार है। इसी ने सारे देश को नियमवद्ध करके धारण कर रक्खा है। यही विशाल लोक-सम्प्रदाय को अपराध और अधःपतन से बचाने की चेष्टा करता आ रहा है।यदि ऐसा न होता तो अँगरेज लोग अपनी पुलिस और फौज के द्वारा ऐसी आश्चर्यजनक शान्ति यहाँ कभी न स्थापित कर पाते। नवाबों और बादशाहो की अमलदारी में भी, अनेक प्रकार की राजकीय अशान्ति रहने पर भी, सामाजिक शान्ति वैसी ही चली आती थी। उस समय भी हमारा लोकव्यवहार शिथिल नहीं हुआ था, लेनदेन और व्यवहार में सफाई और सचाई का