पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/१००

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दूसरा अध्याय।

जिस सिद्धान्त का बयान ऊपर किया गया उसकी योग्यता को काम करने के इरादे से जो लोग विचार और विवेचना की स्वाधीनता के शत्रु हैं वे शायद इस तरह के आक्षेप करेंगे:-वे कहेंगे कि बड़े बड़े धर्मशास्त्री मीमांसक समाजके मतों के अनुकूल या प्रतिकूल जितनी बातें कहेंगे उन सबको जान लेने की हर आदमी को बिलकुल जरूरत नहीं। चतुर और चालाक प्रतिपक्षी के मिया और अविश्वसनीय आक्षेपों को काटने के लिए समाज के सभी साधारण आदमियों को तैयार रहने की क्या जरूरत? उसके आक्षपों का उत्तर देने के लिए समाज में से किसी योग्य आदमी का तैयार रहना बस है। यदि वह आदमी प्रतिपक्षी की उन सब बातों का खण्डन कर दे जिनके कारण साधारण अशिक्षित आदमियों को भ्रस में पड़ने का डर है तो समाज का काम निकाला गया समझना चाहिए। जो मत, जो सिद्धान्त, तुम, शिक्षित अथवा अशिक्षित, लीधे लादे अथवा समझदार, सभी आदमियों को सिखलाना चाहते हो उनके खास खास सबूत सब लोगों पर जाहिर कर दो बाकी की बातों को जानने की जिम्मेदारी उन लोगोंपर छोड़ दो जो अधिक समझदार हैं; जिनको लाधारण आदमी अपना नेता समझते हैं; जिनको वे अपना मुखिया मानते हैं। साधारण आदमी इस बात को बखूबी जानते हैं कि यद्यपि उनमें इतना ज्ञान और इतनी बुद्धि नहीं है कि सभी आक्षेपों का वे खण्डन कर सकें, सभी कठिनाइयों को चे दूर कर सकें, तथापि विरोधियों ने आज तक जितने आक्षेप किये हैं उन सब का उत्तर उनके बहुश्रुत और विशेष शक्तिशाली सुखियों ने दिया ही है। अतएव वे इस बात पर जरूर विश्वास करेंगे कि जो आक्षेप आगे किये जायंगे उनका भी उत्तर वही लोग देंगे; उन्हें खुद इस बखेड़े में पड़ने की जरूरत नहीं। बहुत आदमी इस विषय को इसी दृष्टि से देखते हैं। उनका खयाल है कि किसी बात की सत्यता का इतना भी अंश यदि किसी की समझ में आजाय जितने से उसका विश्वास उस पर होजाय तो उसके लिए उस बात का उतना ही ज्ञान बस है। ऐसे लोगों की इस तरह की दलीलों को मान देने पर भी विचार और विवेचना की स्वाधीनता की आवश्यकता जरा भी फस नहीं होती। क्योंकि जिन लोगों की ऐसी राय है--जो लोग इस तरह की दलीलें पेश करते हैं वे भी इस बात को कबूल करते हैं कि सब को यह विश्वास हो जाना चाहिए कि किसी भी मत या सिद्धान्त के प्रतिकूल