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स्वाधीनता।


सिक शक्तियां दी हैं वे इस लिए नहीं दीं कि वे उखाड़ कर नष्ट कर दी जांय; किन्तु इस लिए दी हैं कि वे बढ़ाई जांय―उनका खूब विकास और विस्तार किया जाय। इसी तरह इस बात पर विश्वास करना भी अधिक सयौक्तिक और अधिक शोभादायक होगा कि स्रष्टा की दी हुई इन शक्तियों की पूरी पूरी उन्नति करने के लिए जैसे जैसे आदमी अधिक कोशिश करेगा, और जैसे जैसे वह उन्हें उन्नति की हद के अधिक पास पहुंचावेगा―अर्थात जैसे जैसे वह अपनी ग्रहण-शक्ति; क्रिया-शक्ति और उपयोग-शक्ति को बढ़ावेगा तैसे ही तैसे स्रष्टा को अधिक प्रसन्नता भी होगी। आदमी की उत्तमत्ता का जो नमूना कालविन ने बतलाया है वह कोई नमूना नहीं। सच्ची उत्तमता का नमूना और ही तरह का है। वह यह है:―आदमी में जो आदमियत् इनसानियत् या मनुष्यता है वह नाश की जाने के लिये नहीं है; उसके और ही उद्देश हैं; वह और ही मतलब से दी गई है। क्रिश्चियन लोग आत्मनिरोध का उपदेश देते हैं और मूर्तिपूजक लोग आत्मस्थापना, या आत्मरक्षा, का उपदेश देते हैं। जिन बातों से आदमी की योग्यता का महत्त्व है, अर्थात् जो बातें उसकी योग्यता को अच्छी तरह कायम रखने के लिये दरकार हैं आत्मनिरोध और आत्मस्थापना उन्हीं में से हैं। ग्रीक लोगों का यह सिद्धान्त था कि हर आदमी को यथासम्भव आत्मोन्नति अर्थात् अपनी तरक्की करना चाहिए। इस सिद्धान्त से, प्लेटो का और क्रिश्चियन-धर्म्मशास्त्र का आत्मशासन नामक सिद्धान्त मेल खाता है; अर्थात् उसके अन्तर्गत आ जाता है; पर उससे अधिक उत्तमता नहीं रखता। तथापि इन दोनों सिद्धान्तों में विरोध नहीं है। आलसिबियाडिस * होने की अपेक्षा


  • आलसिवियाडिस ग्रीस के एथन्स शहरमें ईसाके ४५० वर्ष पहले पैदा हुआ। वह बहुत रूपवान् और धनी था। वह बड़ा शौकीन भी था। सुकरात का वह चेला हो गया था। सुकरात ने उसके दुर्गुणों को दूर करने की बहुत कोशिश की, पर विशेष लाभ नहीं हुआ। एक दफे एथन्स में देवताओं की कुछ मूर्तियां तोड़ डाली गई। इससे लोगों ने आलसिवियाडिस पर मूर्ति तोड़न का इलजाम लगाया। पर पीछेसे उन्होंने उसका अपराध क्षमा कर दिया। जब स्पार्टावालों ने एथन्स पर चढ़ाई की तब आलसिवियाडिस ने एथन्सवालों का सेनापति होकर स्पार्टन लोगों को बहुत बड़ी हार दी। पर, उस पर फिर एक बार राजद्रोह का आरोप आया और ईसा के ४०४ वर्ष पहले वह मार डाला गया।