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तीसरा अध्याय।

जॉन नॉक्स होना शायद अधिक अच्छा होगा; पर इन दोनों की अपेक्षा पेरिक्लिश[१] होना जरूर अच्छा है। यदि इस समय पेरिक्लिस पैदा होता तो यह सम्भव न था कि उसमें जॉन नॉक्स के सब सद्गुण न होते।

आदमी में जो कुछ व्यक्ति-विषयक विषमत्व हो, अर्थात् उसमें जो बातें बेढौल और समानता-रहित हो, उन्हें रगड़ कर सरल, ढौलदार और बराबर बना देने से आदमी में देखने के लायक उदारता और सुन्दरता नहीं आती। दूसरों के हित और अधिकार रक्षित रखकर, अर्थात् उनका अतिक्रमण न करके, उस विषमत्व—उस बेढ़ौलपन—को दुरुस्त करने और उसका विकास होने देने से वह बात आती है। जो लोग जिस काम को करते हैं उनके गुण उस काम में जरूर आजाते हैं। अर्थात् जैसा कर्ता होता है वैसी ही क्रिया भी होती है। अतएव कर्तव्य कर्म्म होता है वैसी ही क्रिया भी होती है। अतएव कर्तव्य कर्म्म में लगे रहने से मनुष्य मात्र का जीवन भी वैभवशाली, विविध प्रकार का, और उत्साही हो जाता है। ऐसा होने से आदमी के खयालत खूब ऊंचे हो जाते हैं और उसके मनोविकार भी खूब तरक्की पाते हैं। यही नहीं, किन्तु, हर आदमी जिस सूत्र द्वारा मनुष्यजाति से बँधा हुआ है वह सूत्र खूब मजबूत हो जाता है और मनुष्य-जाति की योग्यता की इतनी बढ़ती हो जाती है कि उस बढ़ती के साथ ही हर आदमी की भक्ति भी उसके विषय में बढ़ जाती है। जैसे जैसे हर आदमी की विशेषता, अर्थात् व्यक्तिविलक्षणता, बढ़ती जाती है वैसे ही वैसे उसका मोल भी बढ़ता जाता है। उसे यह मालूम होने लगता


  1. पेरिक्लिस का जन्म एथन्स में ईसा के पहले पांचवे शतक में हुआ। उसने राजकीय कामों में बड़ी प्रसिद्धि पाई। धीरे धीरे वह प्रजा-पक्ष का मुखिया होगया। उसने एथन्स के किले को खूब मजबूत बनाया। बहुतसी अच्छी अच्छी इमारतें भी बनवाई। एथन्स का यह वैभव स्पार्टावालों से न देखा गया। इस लिये उन्होंने उस पर चढ़ाई की। दो वर्ष तक लड़ाई जारी रही। पर एथन्सवाले नहीं हारे। इतने में अचानक ऐसी सख्त महामारी आई कि एथन्स के अनन्त आदमी मरगये। इस आपदा का मूल कारण लोगों ने पेरिक्लिस को ठहराया और उसे सजा दी। अन्त में, ईसा के ४२९ वर्ष पहले, ज्वर से उसका प्राणान्त हुआ।