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तीसरा अध्याय ।

कि इन बातों को पसन्द करनेवालों की भी संख्या बहुत अधिक है और न पसन्द करनेवालों की भी बहुत अधिक है-इतनी अधिक कि उन सबका प्रतिबन्ध ही नहीं हो सकता । परन्तु जिस बात को सब लोग करते हैं उसे न करने का, अथवा जिस बात को लब लोग नहीं करते उसे करने का, इलजास यदि किसी पर लगता है और विशेप करके यदि ऐसा इलजाम किसी स्त्री पर लगता है तो उसकी इतनी छी थू होती है गोया उसने कोई बहुत ही बड़ा नैतिक अपराध किया हो। कोई कोई आदमी किसी विशेष प्रकार की पढ़वी, या उच्चपदसूचक चिह्न या प्रतिष्ठित आदमियों से प्रतिष्ठा की प्राप्ति सिर्फ इसलिए चाहते हैं जिसमें उनको मनमाना काम करने का थोड़ा बहुत आनंद भी मिले और उनकी मातमर्यादा को भी हानि न पहुंचे। 'थोड़ा बहुत ' मैं जान बुझकर कहता हूं। इसी लिए मैं उसे दोहराता हूं। क्योंकि जो लोग इस तरह के आनन्द में अधिक मग्न होते हैं उन्हें अपमानकारक बातें कहने की भी अपेक्षा अधिक विपदा के पात्र होना पड़ता है। उन्हें बहुत बड़े खतरे में पड़ने का डर रहता है । कभी कभी ऐसे आदमियों पर पागल हो जाने का आरोप लगाया गया है और उनकी सम्पत्ति तक उनके सम्बन्धियों को दे डाली गइ ह ।

आज कल जनसमुदाय के मत की जो धारा बह रही है उस में यह विलक्षणता है कि यदि कोई अपने स्वभाव की विचित्रता कुछ अधिक साफ तौर पर दिखाने लगता है, अर्थात् यदि कोई अपनी व्यक्ति विशेपता का वैलक्षण्य हुन्छ अधिक खुले तौर पर प्रकट करने लगता है, तो उसका यह वाम लोगों को बिलकुल ही सहन नहीं होता । औसत दरजे के जितने आदमी हैं उनकी सिर्फ बुद्धि ही औसत दरजे की नहीं होती;उनकी वासनायें, उनकी इच्छायें, उनकी ख्वाहिशें भी औसत दरजे की होती हैं । उनकी अभिकापा और अभिरुचि इतनी प्रबल ही नहीं होती कि रूढ़ि के प्रतिकूल कोई बात करने के लिए उनका मन चले । यही कारण है जो विलक्षण वातें करनेवालों का मर्म ही उनकी समझ में नहीं आता अर्थात् जो लोग रूढ़ि की परवा न करो मनमाने काम करते हैं उनकी वाते ही ऐसे आदमियों के ध्यान में नहीं आती; वे उनका मतलब ही नहीं समझ सकते । इसीसे वे ले लोगों की गिनती जंगली और पागल आदमियों में करते हैं; और उनको बहुत ही बुरी नजर से देखते हैं। उनका स्वभाव ही इस तरह का