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स्वाधीनता।

के खयाल से कभी नहीं करते। क्योंकि एक ही तरह के सुभीते और एक ही तरह की खूबसूरती के खयाल का एक ही साथ दुनिया भर के मन में आना भी सम्भव नहीं और एक ही साथ उसका चला जाना भी सम्भव नहीं। परन्तु हम लोग अवस्थान्तरशील भी हैं और साथ ही उसके उन्नतिशील भी हैं। अर्थात् जैसे हम लोग फेर फार, परिवर्तन या अवस्थान्तर के लिए उन्मुख रहते हैं वैसे ही उन्नति और सुधार के लिए भी रहते हैं। अनेक तरह की कलों के सम्बन्ध में हम लोग जैसे नई नई बातें समय समय पर, निकाला करते हैं और जब तक उनसे भी अच्छी बातों का कोई पता नहीं लगता तब तक हम उनको नहीं छोड़ते, वैसे ही राजनीति और शिक्षा में सुधार करने की इच्छा भी हमारे मन में हमेशा बनी रहती है। साधारण नीति और व्यवहार की बातों में भी हम सुधार चाहते हैं; पर भेद इस विषय में इतना ही है कि समझा बुझा कर, या जबरदस्ती करके दूसरों से हम अपनासा व्यवहार कराते हैं। व्यवहारनीति में सुधार की मुख्य कल्पना हम लोगों के दिल में ऐसी ही हो रही है। हम यह नहीं चाहते कि सुधार न हो, उन्नति न हो, तरक्की न हो। उलटा हम इस बात की शेखी मारते हैं कि आज तक दुनिया में जितने समाज-संशोधक हो गये हैं उन सब में हमी सब से बढ़कर हैं। हमारा जितना टण्टा-बखेड़ा है सब व्यक्ति-विलक्षणता के प्रतिकूल है; जितना विरोध है सब व्यक्ति-विशेषता से है; और किसीसे नहीं। यदि सब आदमियों को हम एकसा कर दें; यदि सब को हम एक ही सांचे मे ढालसा दें; तो हमें जरूर यह खयाल हो कि हमने कोई अद्भुत काम कर डाला। पर इस बात को हम भूल गये हैं कि चाल-ढाल और व्यवहार-बर्ताव में यदि एक आदमी दूसरे से भिन्न होगा तभी हम इस बात को जान सकेंगे कि हमारे व्यवहार में किस बात की कमी है और दूसरे के व्यवहार में कौनसी बात सीखने लायक है; अथवा दोनों की अच्छी अच्छी बातें लेकर एक नये ही प्रकार के, उन दोनों से अच्छे बर्ताव का नमूना किस तरह बन सकेगा। बिना इसके इन बातों की तरफ आदमी का ध्यान ही न जायगा। इस विषय से भूल करने का जो परिणाम होता है उसे हम चीन में देख रहे हैं। उसका उदाहरण हमारी आंखों के सामने है। चीन को विलक्षण सौभाग्यवान् समझना चाहिए जो वहां पुराने जमाने में बहुत अच्छी अच्छी अच्छी रीतियां प्रचलित