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तीसरा अध्याय।

हो गई। इसीसे उसमें अब तक बहुत कुछ बुद्धिमानी और शक्ति बनी हुई है। जिन लोगों ने ऐसे रीति-रवाज जारी किये वे कुछ को छोड़ कर और सब बातों में, साधु और तत्त्वदर्शी कहलाए जाने के पात्र हैं। अत्यन्त सभ्य योरपवासी तक उनको इस पदवी के योग्य समझते हैं। उन में सब से अधिक ध्यान देने योग्य एक बात यह है कि जो कुछ वे जानते हैं—जितना ज्ञान उनमें है—उस सब को वे समाज के प्रत्येक आदमी को प्राप्त कराने के लिए यथा-सम्भव प्रयत्न करते हैं। उनका यह प्रयत्न तारीफ के लायक है। जो लोग सब से अधिक विद्वान् होते हैं उन्हींको वे मान और अधिकार के काम देते हैं। जितने लोगों ने यह सब किया उनकी समझ में आदमियों की उन्नति का भेद—उसका मूलमन्त्र—अवश्य ही आजाना चाहिए था और दुनिया में सब तरह की उन्नतियों का उन्हें अगुवा होना चाहिए था। पर बात इसकी उलटी हई। उलटी उन्नति रुक गई; वह जहां थी वहीं रह गई और हजारों वर्ष से वहीं ठहरी हुई है। और यदि अब कभी उनकी उन्नति होगी तो दूसरे देशवालों के ही हाथ से होगी। जिस काम के लिए इंगलैण्ड के लोकहितवादी इतना परिश्रम उठा रहे हैं उसमें चीनवालों ने उम्मेद से बाहर कामयाबी हासिल कर ली है—आशातिरिक्त सफलता पाई है। उन्हों ने सब आदमियों को एकसा कर दिया है; सब को एक ही सांचे में ढालसा दिया है। सब लोगों के विचार और व्यवहार एक ही प्रकार के नियमों और एक ही प्रकार की शास्त्रीय आज्ञाओं से उन्होंने बांध डाले हैं। उनकी वर्तमान अवस्था इसी का फल है। चीन की शिक्षा और राजनीति ने जिस बात को सुव्यवस्थित रीति पर कर दिखाया है वही बात समाज की राय के जोर पर, इस देश में, आज कल, अव्यवस्थित रीति पर हो रही है। यदि व्यत्ति-विशेष, अर्थात् अलग अलग हर आदमी, सामाजिक राय के इस बन्धन को तोड़ डालने में अच्छी तरह कामयाब न होगा, तो जिस योरप का पुराना इतिहास इतने महत्त्व का है, और जिसमें लोगों को क्रिश्चियन-धर्म्म-सम्बन्धी इतना घमण्ड है, वही योरप दूसरा चीन बनने की तैयारी करेगा।

किस बात ने योरप को इस दुर्दशा से बचाया? इसका कारण क्या है कि योरप अब तक चीन नहीं हो गया? क्या बात है जो योरप के देश उन्नति करते चले गये? उनकी उन्नति रुक क्यों न गई? कुछ दूर जाकर वह बन्द