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तीसरा अध्याय।

प्रसिद्ध ग्रन्थकार हो गया है। वह अपनी सब से पिछली और सब से अधिक महत्त्व की पुस्तक में लिखता है कि फ्रांसवालों में परस्पर जितना सादृश्य गत पीढ़ी में था उसकी अपेक्षा वर्तमान पीढ़ी में बहुत बढ़ गया है। वही बात हम लोगों, अर्थात् इंगलैंडवालों, के विषय में भी कही जा सकती है और फ्रांस की अपेक्षा बहुत विशेषता के साथ कही जा सकती है। ऊपर एक जगह पर मैंने हम्बोल्ट की किताब से कुछ लिखा है। उसमें वह कहता है कि मनुष्य मात्र की उन्नति के लिए सब लोगों को एक दूसरे से भिन्न, अर्थात् परस्पर असदृश, होना चाहिए। इसके लिए स्वाधीनता और स्थिति या अवस्था की विचित्रता दरकार है। इनमें से दूसरी बात, स्थिति-विचित्रता, इस देश में दिनों दिन कम होती जाती है। भिन्न भिन्न आदमियों और भिन्न भिन्न समाजों से जो बातें सम्बन्ध रखती हैं, और जो उन सब के स्वभाव को एक खास तरह का कर देती हैं वे, दिनों दिन एक तरह की होती जाती हैं; अर्थात् उनकी भिन्नता—उनकी असदृशता—कम होती जाती है। पहले जुदे जुदे दरजे के आदमी, जुदे जुदे पड़ोस में रहनेवाले पड़ोसी, जुदे जुदे व्यापार करनेवाले व्यापारी मानों जुदी जुदी दुनिया में रहते थे। पर अब वह बात नहीं है। अब वे बहुत करके एक ही तरह की दुनिया में रहते से हैं। पहले और आज कल के जमाने का मुकाबला करने पर यह कहना पड़ता है कि इस समय सब लोग एक ही तरह की किताबें पढ़ते हैं; एक ही तरह की बातें सुनते हैं; एक ही तरह की चीजें देखते हैं; एक ही वस्तु की तरफ अपनी उम्मेद और नाउम्मेदी को ले जाते हैं; एक ही प्रकार के हक और एक ही तरह की आजादी रखते हैं; और एक ही तरीके से उन्हें जाहिर भी करते हैं। जितनी भिन्नता अभी बाकी है उतनी यद्यपि थोड़ी नहीं है तथापि जितनी जाती रही है उसकी अपेक्षा वह बहुत कम है। अर्थात् जिन बातों में भिन्नता रह गई है वे बातें उनकी अपेक्षा कम हैं जिनमें वह नहीं रह गई। फिर यह स्थिति—यह दशा—यह हालत—यहां