पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/१८

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(६) प्रतिनिधि-सत्तात्मक राज्यव्यवस्था (Representative Government)

(७) स्त्रियों की पराधीनता (Subjection of Women)

(८) हैमिल्टन के तत्त्वशास्त्र की परीक्षा (Examination of Hamilton's Philosophy)

(६) उपयोगितातत्त्व (Utilitarionism)

'प्रकृति ' - Nature' और 'धर्म की उपयोगिता' ( Utility of Religion ) इन दो विषयों पर भी मिलने निबन्ध लिखे, पर वे उसकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुए। मिल के पिता ने मिल को किसी विशेष प्रकार की धर्म-शिक्षा न दी थी, क्योंकि उसका विश्वास किसी धर्म पर न था। पर उसने सब धम्मों और धार्मिक सम्प्रदायों के तत्त्व मिल को अच्छी तरह समझा दिये थे। लड़कपन में इस तरह का संस्कार होने के कारण मिल के धार्मिक विचार अनोखे हो गये थे। उनको उसने 'धर्म की उपयोगिता' में बड़ी ही योग्यता से प्रकट किया है। उसकी स्त्री विदुषी थी। वह भी तत्त्वविद्या में खूब प्रवीण थी। पुस्तक-रचना में भी उसे अच्छा अभ्यास था। 'स्वाधीनता' और 'स्त्रियों की पराधीनता' को मिल ने उसी की सहायता से लिखा है। और भी कई पुस्तकें लिखने में उसने मिल की सहायता की थी। अपने आत्मचरित में मिल ने उसकी बड़ी प्रशंसा की है। 'स्वाधीनता' को उसने अपनी स्त्री ही दो समर्पित किया है। उसका समर्पण विलक्षण है। उसमें उसने अपनी स्त्री की प्रशंसा की पराकाष्टा कर दी है। मिल बड़ा उदार पुरुष था। सत्य को खोजने में वह सदैव तत्पर रहता था। जिस बात से अधिक आदमियों का हित हो उसी को वह सब से अधिक सुखदायक समझता था। इस सिद्धान्त को उसने अपने 'उपयोगितातत्त्व' में बहुत अच्छी तरह प्रमाणित किया है। नई और पुरानी चाल को जरा भी परवा न करके जिसे वह अधिक युक्तिपूर्ण समझता था उसीको मानता था। वह सुधारक था; परन्तु उच्छृखल और अविवेकी न था। जो लोग दिना समझे-बूझे पुरानी बातों को वेदवाक्य मानते थे उनके अनुचित विश्वासों को उसने विचलित कर दिया; उनकी सदसहिचारशक्ति को उसने जागृत कर दिया; उनकी विवेचनारूपी तलवार पर जो मोरचा लग गया था उसे उसने जड़ से उड़ा दिया।