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स्वाधीनता।
 

सामाजिक व्यवहार में किसी तरह की योग्यता दिखा कर, अर्थात् जिन बातों से दूसरों का सम्बन्ध है उनमें अपनी उत्तमता या योग्यता का परिचय देकर दूसरों का कृपा का पात्र हो जाय तो बात दूसरी है । अन्यथा उसकी शिका-यत नहीं चल सकती।

मेरा मत यह है-और इस मत को मैं आग्रह-पूर्वक प्रकट करता हूं- कि आदमी के जिस बर्ताव या चालचलन से सिर्फ उसीका सम्बन्ध है, अर्थात् दूसरों के साथ होनेवाले उसके बर्ताव से जिसका कोई सम्बन्ध नहीं है उस बर्ताव या चालचलन के लिए यदि उसे दण्ड देना है तो दूसरों के प्रतिकूल मत से उसका जो नुकसान होगा उसीको काफी दण्ड समझना चाहिए । तक- लीफ, पीड़ाया असुविधा के रूप में जो यह दण्ड मिलेगा उसे दूसरों के मत का अंश समझना चाहिए। यह न समझना चाहिए कि वह उस मत से अलग है । यह उन बातों से दूसरों की व्यवस्था हुई जिनसे दूसरों को हानि नहीं पहुंचती । पर जिन बातों से दूसरों को हानि पहुँचती है उनकी व्यवस्था बिलकुल ही जुदी है। उनके लिए और तरह के दण्ड हैं। दूसरों के हक छीन लेने या उनमें बाधा डालने के लिए; जिस तरह के नुकसान पहुँचाने का हक नहीं है उस तरह के नुकसान दूसरों को पहुँचाने के लिए; दूसरों के साथ झूठ या छल-कपट का व्यवहार करने के लिए; अधिकार या अधिक अच्छी स्थिति के वल पर दूसरों के साथ अन्याय-सङ्गत और अनुदार बर्ताव करने के लिए- और दूसरों को तकलीफ पाते देख, स्वार्थ के वश होकर, उन्हें उससे न बचाने के लिए; नीति की दृष्टि से निर्भत्सना करना, और भयङ्कर प्रसङ्ग आने पर प्रायश्चित्त कराना या और कोई कड़ा दण्ड देना भी मुनासिब होगा । इतनी ही बातों को नीति-विरुद्ध न समझना चाहिए; यह नहीं कि इन्हीं के लिए किसी को सजा दी जा सकती हो। नहीं। जिस स्वभाव, जिस प्रवृत्ति, जिस आदत की प्रेरणा से आदमी इस तरह के अनुचित काम करता है उसे भी नीतिविरुद्ध समझना चाहिए । अतएव उसकी भी निन्दा करना चाहिए, और कोई विशेष गहरा प्रसङ्ग आने पर, घृणा या तिरस्कार भी प्रकट करना चाहिए । स्वाभाविक निर्दयता; ईर्ष्या और दुःशीलता; समाज को सबसे अधिक हानि पहुंचानेवाले बुरे मनोविकारों का राजा मत्सर; दम्भ और कपट; अकारण क्रोध; कारण थोडा क्रोध बहत. दसरों पर सत्ता चलाने या दृसरों को प्रभुता दिखाने की कामना; सांसारिक सुखों का जितना अश