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स्वाधीनता।


फिजूलखर्ची करने के कारण कोई आदमी अपना कर्ज नहीं दे सका; अपने कुटुम्ब के पालन-पोपण की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेकर भी, रुक न रहने के कारण उसकी परवरिश अथवा उसकी शिक्षा का प्रबन्ध नहीं कर सका; तो उसकी निर्भर्त्सना या निन्दा करना और कभी कभी उसे दंड देना बहुत मुनासिब होगा। परन्तु यह याद रखना चाहिए कि एसी दशा उसे जो दंड दिया जायगा वह संयम से न रहने और फिजूलखर्ची करने लिए न दिया जायगा; किन्तु महाजनों का रुपया न देने और अपने कुटुम्भ की परवरिश न करने के लिए दिया जायगा। अर्थात् अपने महाजनों और कुटुम्ब के आदमियों के सम्बन्ध में उसका जो कर्तव्य था उसे पूरा न करने के लिए उसे सजा मिलेगी। जो रुपया उसे अपने महाजनों को देना और अपने कुटुम्ब के काम में लगाना था उसे यदि वह किसी और काम में लगा देता और वह काम चाहे जितना अच्छा क्यों न होता, तो भी उसका अपराध जरा भी कम न होता। उस दशा में भी वह जरूर दंड का पात्र होता जार्ज बार्नव्यल ने अपनी रंडी को रुपये देने के लिए अपने चचा को मार ढाला; परन्तु यदि उसने यह निंद्य काम कोई कारखाना खोलने या व्यापार करने के इरादे से किया होता, तो भी उसे फांसी ही मिलती। अकसर यह देखा जाता है कि दुर्व्यसनों, अर्थात् बुरी आदतों, के कारण कोई कोई आदमी अपने कुटुम्बवालों को तकलीफ पहुंचाते हैं। अतएव उनकी इस निर्दयता और कृतघ्नता के लिए उनकी निन्दा और निर्भत्सना करना जरूर ही मुनासिब है। परन्तु जिनके साथ ऐसे आदमी रहते हैं, या परस्पर सम्बन्ध के कारण जिनका सुख ऐसे आदमियों पर अवलम्बित रहता है, उनको यदि ऐसों की कोई आदतें हानि पहुंचावे ―फिर चाहे वे आदतें बुरी न भी हों तो भी उन्हें वही दंड मिलना चाहिए। अर्थात् इस कारण भी उनकी निन्दा और निर्भत्सना होनी चाहिए। अपना काम करते समय जो आदमी दूसरों के हित और मनोविकारों की परवा नहीं करता उस की निन्दा समाज को करनी ही चाहिए। परन्तु यदि औरों के हित और मनोविकारों की अपेक्षा भी अधिक महत्व के किसी कर्तव्यका पालन उसे करना हो; अथवा, यदि औरों की अपेक्षा अपने हित और मनोविकारों की परवा न करना उसको अधिक मुनासिब हो, तो बात ही दूसरी है। इस दशा में वह निन्दा का पात्र नहीं हो सकता। पहली दशा में जिस कारण से उसने