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चौथा अध्याय ।

मतों के अनुसार यदि ऐसे कानून बनाये जाय कि किस तरह के खेल, तमाशे और नाटक इत्यादि लोग करें और किस तरह के न करें तो और लोगों को यह वात कहां तक पसन्द होगी ? बिना अनुमति के दूसरों की खानगी बातों में दस्तंदाजी करनेवाले इन पवित्र पुरुषों से, इस दशा में, क्या लोग यह साफ साफ न कह देंगे कि आप अपना अपना काम देखिए, आपको हमारी निज की बातों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं ? जिस समाज था जिस गवर्नमेण्ट अर्थात् राजसत्ता-का यह मत है कि जिस तरह के दिलबहलाव के कास उसको बुरे लगें उस तरह के कोई न करे, उसे ऐसा ही जवाब देना चाहिए । पर इस तरह के अनुचित और अन्याय-पूर्ण नियम यदि एक बार कुबूल कर लिये जायेंगे, तो किसी प्रवल पक्ष या किसी और ही सत्ताधारी की राय के अनुसार ऐसे नियमों का दुरुपयोग होने पर लोगों को उसके खिलाफ कुछ कहने को बहुत कम जगह रहेगी। योग्य रीति से वे उसका प्रतिवाद न कर सकेंगे-वे उसके प्रतिकूल युक्ति-पूर्ण आक्षेप न ला सकेंगे। किली नियम को कबूल करके उसके प्रयोग-उसकी योजना- के प्रतिकूल कोई कुछ नहीं कह सकता; और यदि कहे भी तो उसकी बात पर लोग ध्यान नहीं देते । ऐले भी धर्म हैं जिनको हम लोगों ने क्षीण समझ लिया था-अर्थात् जिनके विपय में हमारा यह खयाल था कि थोड़े ही समय में वे बिलकुल नष्ट हो जायगे । पर ऐसे धर्मों में कई धर्म नष्ट तो हुए नहीं उलटा जोर पकड़ गये हैं। इस बात के उदाहरण मौजूद हैं। न्य इंग्लैण्ड की तरफ देखिए। वहां जाकर पहले पहल जो लोग रहे उनके. धामिक विचारों के अनुसार, अर्थात् उनका जो पन्थ है उसीका ऐसा, यदि कोई पन्थ हमारे देश में फिर उठ खड़ा हो तो क्रिश्चियनों के प्रजासत्तात्मक राज्य के विषय में न्यूइंग्लैंडबालों के जो विचार हैं उनको कुबूल करने के लिए हम लोगों को तैयार रहना होगा।

उदाहरण के तौर पर एक और कल्पना कीजिए। यह कल्पना पहली कल्पना की अपेक्षा अधिक सम्भवनीय है । अर्थात् इस दृसरी कल्पना

जनका यह मत था कि आदमी को अपने आचरण का मेथड (तरीका) धम्र्मा मुकुल रखना चाहिये । इकी मेथड (Method )शब्द के कारण इस पन्थ का नाम मेधाटिस्ट ( Methodist ) हुआ।