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चौथा अध्याय।

के किसी काम से और लोगों का नुकसान न होने पर भी वह आदमी सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की दृष्टि में अपराधी ठहरता है। दूसरे इस बात का कि ऐसा काम करने के कारण उस आदमी को दंड देने का अधिकार होकर भी परमेश्वरने समाज या समाज के अफसरों को दिया है। आज तक धार्म्मिक बातों के सम्बन्ध में जितना अन्याय हुआ है वह इस आधार पर हुआ है कि हर आदमी धर्म्मानुसार आचरण करता है या नहीं, इस बात की जाँच करना दूसरों का काम है। यदि इस तरह का आधार—यदि इस तरह का कल्पनाकार्य—उचित, मुनासिब या न्याय्य मान लिया जाय तो जिन लोगों ने औरों को, आज तक, इसी कारण, सताया है वे किसी तरह अपराधी नहीं माने जा सकते। जो लोग इस बात की बार बार कोशिश करते हैं कि इतवार के दिन रेल से सफर करने की मनाई होजाय, या अजायब घर न खोले जाँय, या और भी इसी तरह के काम न किये जाँय, उनके मनोविकार यद्यपि इतने क्रूर और निर्दयतापूर्ण नहीं हैं जितने कि धार्मिक बातों में दूसरों को पीड़ा पहुँचानेवाले पुराने धर्म्मान्ध आदमियों के थे, तथापि दोनों तरह के मनोविकार एक ही दरजे के हैं। क्योंकि जो बात जिसके धर्म्मानुकूल है उसको उसे करते देख, उसके प्रतिबन्ध का इस लिए निश्चय करना कि वह हमारे धर्म्म के अनुकूल नहीं है, वैसे ही मनोविकारों का फल है। धर्म्मान्ध आदमियों के खयाल बहुत बढ़े चड़े होते हैं। वे यह समझते हैं कि विश्वासहीन, अर्थात् पाखंडी, आदमियों के कृत्यों से ईश्वर घृणा ही नहीं करता, किन्तु यदि हमने उनको न सताया या उनको न सजा दी तो वह हमें भी अपराधी समझता है, अतएव पुराने और नये धर्म्मान्धों के मनोविकारों का बीज एक ही तरह का है।

मनुष्य-जाति की स्वतंत्रता को कुछ न समझने के ये जो उदाहरण मैंने दिये उन में एक उदाहरण मैं और बढ़ाना चाहता हूँ। बिना उसे बढ़ाये मुझ से नहीं रहा जाता। कुछ दिनों से एक नया पंथ निकला है। उसका नाम है मार्मन[१] पन्थ। जब कभी इस पन्थ के विषय में लिखने का कोई कारण


  1. इस पन्थ के अनुयायियों का यह सिद्धान्त है कि मनुष्य अनादि है। उसे ईश्वर ने नहीं पैदा किया। प्रयत्न करने से वह ईश्वर की पदवी पाने की योग्यता प्राप्त कर सकता है। इसका स्थापक स्मिथ नाम का एक अमेरिकन था। उसने यह झूठ खबर उड़ाई कि मुझे एक नया धर्म्मग्रन्थ मिला है। वह सोने के पत्रों पर लिखा हुआ है। पर वह एक उपन्यास था। इससे उस पर यह इलजाम लगाया गया कि उसने झूठा धर्म्म चलाने की कोशिश की। अन्त मे उसे कैद की सजा मिली। १८४४ ई॰ में उसे कुछ आदमियों ने जेल ही में मार डाला। स्मिथ के बाद उसके शिष्य अब्राहमने इस पन्थ का नायकत्व लिया। उसने 'न्यूजेरुशलम' नाम का एक नगर बसाया। वहीं वह अपने अनुयायियोंके साथ रहने लगा।