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स्वाधीनता।

उपस्थित होता है तब इस देश के अखबार बेतरह बिगड़ खड़े होते हैं और अपशब्दों से भरी हुई अनाप सनाप बातों की वर्षा से मार्मन लोगों पर हमला करते हैं। यह बात झूठ मूठ जाहिर कर दी गई कि ईश्वर के मुँँह से निकली हुई बातों से भरा हुआ एक ग्रन्थ मिला है। इस पर एक नया धर्म्म बन गया। यह भी नहीं, कि इस नये मत की स्थापना इसके स्थापक के किसी विलक्षण गुण के आधार पर हुई हो। तथापि इस रेल, तार और अखबारों के जमाने में लाखों आदमियों का विश्वास इस पर जम गया। यहां तक कि इस धर्म्म के अनुयायियों का एक जुदा समाज ही स्थापित हो गया। इस आकस्मिक और ध्यान में रखने लायक अद्भुत बात पर जो कुछ कहा जाय सब थोड़ा है। इस विषय में एक बात याद रखने लायक यह है कि इसकी अपेक्षा अधिक अच्छे धर्म्मों की तरह इस धर्म्म के लिए भी लोगों ने अपनी जान दे दी है। इस धर्म्म की स्थापना करनेवाले के उपदेशों से अप्रसन्न होकर लोगों ने उसे जान से मार डाला। उसके अनेक अनुयायियों पर भी अन्याय हुआ। उपद्रवी लोगों ने उनको भी उसी की तरह मार डाला। जिस देश में वे पैदा हुए और बहुत दिन तक रहे वहां से वे जबरदस्ती निकाल दिये गये। लोग यहां तक उनके पीछे पड़ गये कि उन्हें देश त्याग करके जंगल के बीच एक निर्जन जगह में जाकर रहना पड़ा। इतने ही से लोगों को सन्तोष नहीं हुआ। अब आज कल, इस देश में बहुत आदमियों की यह राय हो रही है कि एक फौज भेज कर उन पर चढ़ाई करना और उन लोगों का मत जबरदस्ती अपना सा कर डालना चाहिए। अर्थात् उनको उनका धर्म्म छुड़ाकर क्रिश्चियन बना डालना चाहिए। इन सब बातों को लोग न्याय्य समझते हैं। हिचकते वे सिर्फ इस बात से