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चौथा अध्याय

हैं कि वहां फौज भेजने में सुभीता नहीं है। मार्मन-सम्प्रदाय के अनुयायियों को एक ही साथ एक से अधिक स्त्रियां रखने की आज्ञा है। जिस बात से चिड़ कर मामूली धाम्भिक उदारता की भी परवा न करके लोग मार्मन पन्य वालों से द्वेप करते हैं, और उन पर फौज तक भेजने की सलाह देते हैं, वह अधिक स्त्रियां करने की आज्ञा है। मार्मनधर्म के इस बहु पत्नीत्व-विषयक नियम को लोग बिलकुल ही नहीं बरदाश्त कर सकते । हिन्दू, मुसलमान और चीन वाले भी एक से अधिक स्त्रियां करते हैं। धाम्मिक दृष्टि से उनके यहां यह बात बुरी नहीं समझी जाती। क्योंकि बहु-पत्नीत्व की उनके धर्म में आज्ञा है । तथापि उन लोगों से इस देश वाले वैर नहीं रखते । पर मार्मन लोग अंगरेजी बोलते हैं और अपने को एक प्रकार के क्रिश्चियन बत- लाते हैं। इसीले उनकी बहु-पत्नीत्व रीति को देख कर इस देश वाले उनसे वैतरह द्वेषभाव रखते हैं । मार्मन लोगों को मैं खुद नहीं पसन्द करता। इस पन्थ को जितनी तिरस्कार-दृष्टि से मैं देखता हूं उतनी तिरस्कार-दृष्टि से शायद ही और कोई देखता होगा। पर इस तिरस्कार-दृष्टि के और कारण हैं। उनमें से मुख्य यह है कि स्वाधीनता के नियमों के आधार पर इस पन्थ की स्थापना का होना तो दूर रहा, उलटा उसके प्रतिकूल नियमों के आधार पर इसकी स्थापना हई है। क्योंकि इस पन्थ का उपदेश स्त्रीरूपी आधी प्रजा के सामाजिक बन्धन खूब कड़े करने और पुरुप रूपी आधी प्रजा के खूब होले कर देने का है। पर यह बात भी याद रखनी चाहिए कि इस तरह के अनुचित पारस्परिक सम्बन्ध से यद्यपि मार्मन लोगों की स्त्रियों का नुकसान है, तथापि विवाहविषयक और बन्धनों की तरह उन्होंने इस बन्धन को भी खुशी से कुबूल कर लिया है। इसके लिए उन पर कोई जमरदरती नहीं की गई। यह बात चाहे जितनो आश्चर्यजनक साल्म हो, तथापि ऐली नहीं है कि समझ में न आ सके। संसार के आचार-विचार और रीजिरवाज ऐसे हैं कि उनको देख कर स्त्रियों को गर समार होता है कि विवाह होना बहुत जरूरी बात है; यहां तक दि. कादिवास्ति रहने की गरेका अर्थात् बिलकुल ही पत्नी न होने की अपेक्षा, मले आदमी की पत्नी होना दे अच्छा समझती हैं जिसके एक से अधिक सिपाहे । नार्मन लोग और सुल्क वालों से यह कभी नहीं कहते कि हम भी हम लोगों की ली विवाह-नहाति जारी करो; और न वे उनसे