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चौथी अध्याय ।

करना चाहिए ; क्योंकि यह तरकीब कोई अच्छी और उचित तरकीब नहीं है। जिस समय असभ्यता का सारे संसार में अकण्टक राज्य था उस समय भी यदि सभ्यता ने उस पर अपना प्रभुत्व जमा लिया तो आजकल असभ्यता के इतने कमजोर हो जाने पर भी इस बात से डरना, कि वह फिर प्रबल होकर सभ्यता को जीत लेगी, बहुत दूर की बात है। इस तरह का डर व्यर्थ है। जो सभ्यता अपने जीते हुए शत्रु से हार जायगी वह हारने के पहले यहां तक नीच अवस्था को पहुँच गई होगी कि उसके उप- देशक, शिक्षक, चा और लोग इस लायक ही न रह गये होंगे, उनमें इतनी इच्छा ही न रह गई होगी, कि अपनी सभ्यता की रक्षा के लिए वे खड़े हो सकें। यदि बात इस नौवत को पहुंच गई हो तो एसी सभ्यता को देश से निकल जाने के लिए जितना जल्द नोटिस दी जाय उतना ही अच्छा । क्यों- कि यदि वह बनी रहेगी तो दिनोंदिन उसकी हालत खराब होती जायगी और अन्त में, रोम के पश्चिमी राज्य की तरह, वह बिलकुल ही नष्ट हो जायगी । तब तेजस्वी असभ्य लोग ही उसका उद्धार करेंगे।



• : पुराने जमाने में असभ्य गाल और तुर्क लोग इतने प्रबल हो उठे थे कि जमोर संग राज्य को हल में मिलाकर, जिसे जितना भाग उसका मिला, उसने नाकाने शारजे में कर लिया था।