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स्वाधीनता।


पढ़ी हुई हो―कि शिक्षा की किसी अच्छी रीति को वह निकाल ही न सके, अथवा निकालने की इच्छा ही उसे न हो, तो बात दूसरी है। इस दशा में शिक्षा का प्रबन्ध गवर्नमेंट को करना ही होगा। जब व्यापार और उद्योगं धन्धे के बढ़े काम करने की यथोचित शक्ति लोगों में नहीं होती तब लाचार होकर गवर्नमेंट को ही ऐसे काम करने पड़ते हैं। उसी तरह, समाज की हीन दशा में गवर्नमेंट स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय खोल कर उनको जारी रक्खे। समाज की सन्तति को बिलकुल ही शिक्षा न मिलना भी बुरा है और एक ही तरह की शिक्षा न मिलना भी बुरा है। परन्तु पहले की अपेक्षा दूसरी बात कम हानिकारक है। इससे जब तक समाज की दशा न सुधरे तब तक थोड़ी हानि ही सही। पर, गवर्नमेण्ट की मदद से शिक्षा देने के लिए यदि देशमें काफी आदमी मिलते हों, और वे उस काम के लिए लायक भी हों, तो सब लोगों की इच्छाके अनुसार जुदा जुदा तरह की वैसी ही अच्छी शिक्षा देने के लिए भी वे जरूर राजी होंगे। अतएव सब लोगों को अपने अपने लड़कों को शिक्षा देनी ही चाहिए, इस तरह का एक कानून बनाकर गवर्नमेण्ट को चाहिए कि वह ऐसे आदमियों को उचित उत्तेजन दे और जो लड़के स्कूल का खर्च खुद न दे सकें उन्हें वह खर्च भी देने की उदारता दिखावे। बस गवर्नमेण्ट का कर्तव्य सिर्फ इतना ही है।

यह कायदा जारी करने के लिए―इस कानून को अमल में लाने के लिए गवर्नमेण्ट को चाहिए कि वह थोड़ी ही उम्र में सब बच्चों की परीक्षा का प्रबन्ध करे। इस काम के लिए यही साधन सब से अच्छा है। गवर्नमेंट को उम्र की सीमा नियत कर देना चाहिए और देखना चाहिए कि उस उम्र में हरएक बच्चा लिख पढ़ सकता है या नहीं। बच्चे से यहां मतलब लड़का और लड़की दोनों से है। यदि परीक्षा में कोई बच्चा फेल हो जाय अर्थात् वह लिख पढ़ न सके तो, मुनासिब कारण न बतला सकने पर, बाप पर गवर्नमेंट नियत दण्ड करे। इस दण्ड को वह, जरूरत समझे तो, बाप से मेहनत के रूप में ले और बच्चे को उसीके खर्च से स्कूल भिजवावे। यह परीक्षा हर साल ली जाय और परीक्षा के विपय धीरे धीरे बढ़ाये जायँ। ऐसा करना मानों सब लोगों को मजबूर करना होगा कि उन्हें अपने बच्चों को अमुक दरजे तक अमुक प्रकार की शिक्षा देनी ही चाहिए और उस शिक्षा का संस्कार उनके मन पर होना ही चाहिए। इसके सिवा