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पांचवां अध्याय।

सब विषयों में ऊंची ऊंची परीक्षायें नियत करना चाहिए। जिनमें शामिल होना लोगों की खुशी पर अवलम्बित रहे। जो इन परीक्षाओं को पास कर ले उनको सरटीफिकटें दी जाँय। गवर्नमेण्ट को मुनासिब है कि इस परीक्षा-प्रबन्ध के द्वारा वह जन-साधारण की राय के प्रतिकूल कोई काम न करे। गवर्नमेण्ट की अनुचित दस्तंदाजी को रोकने के लिए, ऊंचे दरजे तक की परीक्षाओं में, निश्चित शास्त्रों और निश्चित बातों से ही सम्बन्ध रखनेवाले विषय है। ऐसा करने से विवाद के लिए जगह न रहेगी—भिन्न मत होने का डर न रहेगा। भाषा और उसके प्रयोग का सिर्फ इतना ही ज्ञान होना चाहिए जितने से परीक्षा के विषयों को समझने और सवालों का जवाब देने में सुभीता हो। धर्म्म, राजनीति या और ऐसे ही वादग्रस्त, अर्थात् झगड़े के, विषयों में परीक्षा लेते समय इस तरह के सवाल न पूछने चाहिए कि कोई विशेष प्रकार का मत ठीक है या नहीं। सवाल इस तरह के होने चाहिए कि किस ग्रन्धकार ने किस आधार पर—किन प्रमाणों के बल पर—अमुक मन का ठीक होना सिद्ध किया है; और उस मत को किस पन्थ या किस सम्प्रदाय ने कुबूल किया है। इस तरह की काररवाई से वादग्रस्त विषयों के सम्बन्ध में वर्तमान समय के उन्नतिशील जन-समूह की जैसी स्थिति है वैसी ही बनी रहेगी; उससे बुरा न हो सकेगी। अर्थात् इस तरह की परीक्षाओं के कारण उस स्थिति में कोई फरक न पड़ेगा। उसकी अवनति का डर न रहेगा। जो लोग सनातन अर्थात् रूढ़ धर्म्म के अनुयायी होंगे उनको उस धर्म की शिक्षा मिलेगी और जो किसी और धर्म्म के अनुयायी होंगे उनको उस धर्म्म की शिक्षा मिलगी। अर्थात जिसका जो धर्म्म होगा उसे उस धर्म्म छोड़ने की शिक्षा न दी जायगी। यदि लड़कों (या लड़कियों) के माँ-बाप को कोई उज्र न हो तो जिस स्कूल में और और विषयों से सम्बन्ध रखनेवाली शिक्षा दी जाय उसी में धर्म्म-सम्बन्धी शिक्षा भी दी जाय। जिन बातों के विषय में विवाद है, अर्थात जो विषय वादग्रस्त हैं, उनके सम्बन्ध में जन-समुदाय की राय में दस्तंदाजी करने का यत्न करना गवर्नमेण्ट को मुनासिब नहीं। इस तरह की दस्तंदाजी से बहुत नुकसान होता है। परन्तु किसी भी जानने लायक विषय के सिद्धान्त सुनने और समझने भर का ज्ञान विद्यार्थियों को हो गया है या नहीं, इस बात की परीक्षा लेना, और उसमें पास होने पर सरटीफिकट देना, दस्तंदाजी नहीं कहलाती।

स्वा॰—१४