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स्वाधीनता ।

जायगी। इतना ही नहीं; किन्तु और भी अनर्थ होंगे । जहां ऐसी व्यवस्था होती है वहां किसी अन्याय-सङ्गत काम के सहसा हो जाने या मामूली तौर पर कोई कारण देख पड़ने से यदि राजा या राजसत्ताधारी कोई और व्यक्ति किसी तरह की उन्नत्ति या सुधार भी करना चाहता है तो उसे कामयात्री नहीं होती। हां, यदि, कोई सुधार उस महकमेशाही के फायदे का हो तो बात दूसरी है। रूस के राज्यप्रबन्ध की यही दशा है । उसे याद करके दुःख होता है । जिन लोगों को वहां की राज्य-व्यवस्था की जाँच करने का मौका मिला है उनकी यही राय है। इस महकमेशाही के मुकाबिले में खुद रूस- नरेश, जार, भी कोई चीज नहीं हैं। उस बेचारे की कुछ भी नहीं चलती। अपने अधिकारियों में से-अपने पंनियों में से-जिसे वह चाहे उसे साइबेल रिया के काले पानी को भेज सकता है। उसमें इतनी शक्ति जरूर है । परन्तु इन लोगों की इच्छा के विरुद्ध, या इनकी मदद के बिना, वह राज्य ही नहीं करना -वह कोई काम ही नहीं कर सकता । जार के आधे- कारी इतने प्रवल हैं कि वे यदि चाहे तो, जार की बात पर ध्यान ही न दे यहां तक कि वे, यदि इच्छा करें तो, उसके हुक्म पर भी हरताल लगा दें। जो देश रूस की अपेक्षा अधिक सुधरे हुए हैं और जहां लोगों के मन में विद्रोह की वासना अधिक रहती है वहां, अधिकारियों की प्रबलता होने से, सब आदमियों की यह इच्छा रहती है कि उनके सारे काम गवर्नमेंट ही कर दे। अथवा, कम से कम, वे इतना जरूर चाहते हैं कि, पूछने पर, अपने सव काम करने के लिए उनको गवर्नमेंट अनुमति ही न दे; किन्तु वह यह भी बतलादे कि वे लोग उन सब कामों को किस तरह करें। अतएव यदि उन पर कभी कोई विपत्ति आती है तो उसके लिए वे अधिकारियों ही को जिम्मेदार समझते हैं। यदि कदाचित् आई हुई विपत्ति उन्हें असह्य हुई तो वे विद्रोह कर बैठते हैं और वर्तमान गवर्नमेंट के प्रतिकूल काम करते हैं। जब बात इस नौवत को पहुँच जाती है तब राजा या सत्ताधारी किसी और व्यक्ति को अपना आसन छोड़ना पड़ता है, उसकी जगह कोई और आदमी- चाहे उसे सब लोगों की तरफ से राज्य करने का अधिकार मिला हो चाहे न मिला हो-जा बैठता है। वह भी महकमेशाही के अधिकारियों पर हुक्म चलाने लगता है और सब बातें प्रायः पूर्ववत् होने लगती हैं। वह अधि- कारी-मण्डली-वह महकमेशाही-जैली की तैसी बनी रहती है, क्योकि. स० काम करने की योग्यता ही और किसीमें नहीं रह जाती।