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स्वाधीनता।

जुदा हर आदमी के, या अनेक आदमियों के, समुदाय के उद्योग और नल को उत्साह देने के बदले गवर्नमेण्ट खुद ही अपने उद्योग को बढ़ाने लगे; गया यदि उन लोगों को सब बातें बतलाने, सलाह देने और उनले कोई न हो जाने पर उसे उनके गले उतार देने के बदले, हथकड़ी और बेडी के जोर पा वह उनसे जबरदस्ती कास लेने लगे; अथवा यदि उनको एक तरफ हटा कर अर्थात् उनकी परवा न करके उनको तुच्छ समझकर उनका काम गवर्नमेंट खुद ही करने लगे, समझना चाहिए कि उसने अपने अधिकार की सीमा का उल्लंघन किया। अतएव यह निश्चित जानना चाहिए कि उसी समय से अनर्थ का आरम्भ हुआ। किसी देश-किसी राज्य की कीमत या योग्य. ता उन लोगों की कीमत या योग्यता पर अवलम्बित रहती है जो उस देश में रहते हैं । अर्थात् प्रजा जितनी ही अधिक योग्य और सुशिक्षित होगी राज्य-व्यवस्था भी उतनी ही उत्तम, दृढ़ और बलवती होगी। अतएव जो गवर्नमेंट प्रजा की मानसिक वृद्धि और यथेष्ट उन्नति की तरफ पूरा ध्यान न देकर प्रजा की छोटी बातों में सिर्फ इस लिए दखल देती है जिसमें ये बातें कुछ अधिक योग्यता से की जाय, अथवा अनुभव के आधार पर बनाये गये काम-काज करने के नियमों के अनुसार ही लोग उन्हें कर, उसे पीछे से अफसोस होता है। जो गवर्नमेंट प्रजा की मानसिक वृद्धि की तरफ दुर्लक्ष्य करती है और उसे अपना गुलाम समझकर इस लिए दुर्वल कर देती जिसमें वह गवर्नमेंट की आज्ञा के अनुसार सारे काम-फिर चाहे चे प्रजा के फायदेही के लिए क्यों न हों-चुप चाप किया करे उसे, कुछ दिनों में यह वात अच्छी तरह मालूम हो जायगी कि छोटे आदमियों से-अर्थात् जिन में बहुत थोड़ी दुद्धि है उनसे-बड़े बड़े काम कभी नहीं हो सकते । उसके ध्यान में यह बात भी आजायगी कि जिस राज्यरूपी पेंच को अच्छी तरह चलान-जिस महकमेशाहीरूपी यंत्र को सफाई से जारी रखने के लिए उसने प्रजा का इतना नुकसान किया वह यंत्र अब अधिक दिन तक नहीं चल सकता । क्योंकि जव प्रजा की बुद्धि, उद्योगशीलता और शक्ति का सर्वथा हाल ही हो जायगा तब उस यंत्र को चलावेगा कौन ? अतएव वह जरूर ही बन्द हो जायगा ।

समाप्त ।