पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२६

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स्वाधीनता।

पहला अध्याय।

प्रस्तावना।

इस पुस्तक का विषय इच्छा की स्वाधीनता से सम्बन्ध नहीं रखता। इसमें इच्छा की स्वाधीनता का वर्णन नहीं रहेगा। इसमें उस स्वाधीनता अर्थात् आजादी, का वर्णन रहेगा जिसका सम्बन्ध समाज से है। बहुत से आदमियों के जमाव को जन-समूह, लोक-समुदाय या समाज कहते हैं; और एक आदमी को व्यक्ति या व्यक्ति-विशेष। आदमियों का जमाव, समुदाय या समाज एक दूसरे के फायदे के लिये इकट्ठा रहता है। जन-समूह बहुत से ऐसे नियम और बन्धन बनाता है जिन्हें हर आदमी को मानना पड़ता है। इस से, मैं, इस लेख में, इस बात का विचार करना चाहता हूँ, कि व्यक्ति-विशेष, अर्थात् अलग अलग हर आदमी के लिए समाज के द्वारा कब, कहां तक और किस प्रकार का बन्धन बनाया जाना उचित होगा। किस दशा में—किस हालत में समाज के बनाये हुए नियम, अर्थात् कायदे, हर आदमी को मानना मुनासिब समझा जायगा। इस बात का दूर तक विचार या विवेचन, आज तक, उचित रीति पर बहुत कम किया गया है। और, इस समय, आदमियोंके व्यवहार, अर्थात् काम-काज, से सम्बन्ध रखनेवाली