पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२६९

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. हमें प्रेम का दर्शन करना है, अतः संकीर्णता की सीमा लाँघनी ही होगी। धर्म में हमें सरल सत्य की झाँकी देखनी है, अतः सहिष्णुता का अवलम्ब लेना ही होगा। हमारा भावी धर्म आर्यधर्म, वौद्ध धर्म, इस्लाम धर्म या ईसाई धर्म तक ही सीमित न रहकर एक व्यापक 'विश्व-धर्म' होगा। परमप्रभु के चरणों के समीप हमें यही विश्व-धर्म ले जायगा, मेरा यह दृढ़ विश्वास है।

इस विश्व-धर्म की हलचल में प्रेम की ताकत होगी, द्वेष की नहीं। इसी विचार को ध्यान में रखकर मैं अपने कुछ टूटे-फूटे शब्दों को प्रेमात्मक धर्म की कसौटी पर कसने को विखेर रहा हूँ। मैं नहीं जानता, कि इस सेवा के द्वारा मुझे किस परिणाम का भागी बनना पड़ेगा। मैं अपना 'केस' उस 'विश्व-विहारी' के पैरों पर रख दूंगा, जिसकी प्रेरणा से मैंने अब से अपने जीवन को विश्व-धर्म का सेवक बनाने का एक दुर्वल संकल्प किया है । पर क्षमा की भीख माँगने का तो मैं हमेशा हकदार रहूँगा।

मोहन-निवास,

पमा

दीपावली, सं० १९८७
वियोग हरि