पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२९२

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है आज! बड़ों के बड़े-से-बड़े पाप-कृत्य भी तेरी हो बोट में छुपा लिये जाते हैं, और तेरी ही सत्ता के नाम पर छोटे के अच्छे-से-मच्छे सुकर्म भी धूल में मिला दिये जाते हैं! तेरा ही नाम लेकर समाज के बड़े आदमी आशमान पर चढ़ा दिये जाते हैं, और, नाथ, तेरी ही अनकृपा का भय दिखाकर दीन और दुर्बल रसातल में फेक दिये जाते हैं ! मालूम होता है, ईश्वर अब सिर्फ अमीरों के ही काम का रह गया है । इन धर्मात्माओं की सुकृत-सूची से तो यही प्रकट हो रहा है, कि गरीबों के लिए तो वह बिल्कुल ही वेकार चीज़ है। धर्म की रू से सिखाया जाता है, कि यदि छोटा आदमी बड़े की सेवा तन-मन-धन से न करेगा, तो वह नरक-गामी होगा, अदीनबन्धु ईश्वर उसे कठिन-से कठिन दण्ड देगा-लिहाजा छोटों को चाहिए, कि वे बड़े को अल्लाह ताला से भी बड़ा समझा करें । मौजूदा मज. हवों का कुछ ऐसा ही इशारा है । बड़े लोग जो कुछ भी कर डालेंगे, वह सब 'ईश्वर-प्रेरित' ही कहा जायगा। छोटे अगर उनके दिव्य कर्मों में किसी प्रकार का अडंगा लगायँगे, तो वे अधार्मिक नराधम नास्तिक के नाम से विघोषित कर दिये जायेंगे। धर्म और परमेश्वर की कैसी सुंदर व्याख्या हुई है।

जीवितेश्वर ! जब बात-बात में इस तरह तेरा तिर- स्कार हो रहा है, तब यहाँ तेरी ऐसी आवश्यकता ही क्या

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