पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२९७

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'यही जाना, कि अबतक कुछ नहीं जाना !'

तू जहाँ था, अवभी वहीं है और रहेगा भी वहां । तु जो था, अब भी वही है और रहेगा भी वही । पर कहाँ है और क्या है—यही हमारे परिमित ज्ञान के बाहर है । लड़. कपने की कोई हद ! खुदाई खोज मेरी ही पूरो और सच्ची है, हर कोई यह दावा कर रहा है ! मेरा दिखाया रास्ता ही पिया से मिला सकता है, हर कोई यह डींग मार रहा है ! क्या कहा जाय इस भोलेपने पर ! किसकी खोज तो सच्ची है और किस की कच्ची, या किसकी पूरी है और किस की अधूरी--इस सब का जाननेहारा तो, हृदय-रमण, एक तू है । तेरे मिलने के कितने कैसे रास्ते हैं इस का भी मर्मी तूही है। क्या रखा है इन दार्शनिक खोजों में और इस मत के रास्ते में या उस मत के रास्ते में ? दिल में तेरे .. मिलने के लिए तड़प हो, लगावट हो, तो कोई भी रास्ता तेरा हाथ पकड़ा देगा, वर्ना अच्छे-से-अच्छे रास्ते में भी झूठी बनावट ही है। सभी सच्चे हैं और सभी झूठे हैं। तू मिल गया तो सब सचे; और परदे की मोट में रहा, तो फिर झूठे तो हैं ही । तेरा दीदार न मिला, तो वह खोज ही किस काम की, वह रास्ता ही किस मतलब का ?

दुनिया बावली है, खासकर यह मजहबी दुनिया ।

बावली तेरे प्रेम-रसाल का रस तो चुपचाप चूसेगी नहीं,

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