पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/३०२

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क्या तूने ही इन, संप्रदायवादियों को सिखा दिया है ?

कट्टर धर्म-धुरन्धरों का तो यही दावा है, कि वे जो कुछ करते हैं, वह सब ईश्वरही की प्रेरणा से करते हैं। पर यह तो, अन्तर्यामी, तू ही जानता होगा, कि वह तेरी प्रेरणा होती है या उनकी वासनात्रों की प्रेरणा!

प्रभो ! तेरी रची सुन्दर सृष्टि को नष्ट-भ्रष्ट करके ही शायद सांप्रदायिक द्वेषवादी दम लेंगे । इस जगद्व्यापी विद्वेष का लय अब महाप्रलय में ही होगा-ऐसा जान पड़ता है। इस विद्वेषने ही कल्याणकारी धर्म का ध्वंस किया, इसीने सामाजिक संघटन को छिन्न-भिन्न कर दिया भौर इलीने हमारी स्वर्ग-श्रेष्ठ पृथिवो को नरक से भी निकृष्ट बना दिया है। इसीने दम्भ-पूर्ण स्वार्थ की सृष्टि की, और इसीने ईश्वरीय सत्ता का तिरस्कार करके हमारा आत्म-पतन कराया । इस दुष्ट के अनेक रूप हैं। कहीं धर्म विद्वेष फैल रहा है, कहीं वर्ग-विद्वेष फूल रहा है और कहीं वर्ण-विद्वेष फल रहा है। द्वेष की भागने प्रेम की सुन्दर फुलवारी जलाकर खाक कर दी है। इस कलह- प्रिय विद्वेषने बुद्धि और भावना को आपस में लड़ा दिया है । दोना ही क्षत-विक्षत हो गयी हैं । एक अहंकार- व्याधि से पीड़ित है और दूसरी कुटिल दंभ के आघात से। अहो बलीयसी विद्वेष-महिमा !

लीलामय ! तेरे उद्यान में ऐसे भी कुछ कोकिल कूक

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