पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/३१९

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सदियों से रूठा हुआ हैन? साधक उसे मनायँगे, रिझायँगे, हज़ार बार उठेंगे, बैठेंगे, झुकेंगे-यह तो होगी नमाज़; और सौ-सौ दण्डवत्-प्रणाम करेंगे, आरती उतारेंगे-यह होगी ईश पूजा। शाम-सवेरे प्रार्थना भी हुआ करेगी सभी पुरानी-नयी भाषामों में। प्रार्थना के मंत्र संस्कृत-प्रोकृत में भी हैं अरवी-फारसी में भी है और लैटिन-अंग्रेजी-जरमन मादि भाषाओं में भी वैसे ही हैं। अरे, प्रार्थना की भाषा तो हृदय की भाषा है। वहाँ अपने-अपने अन्तस्तल से निकली हुई प्रार्थनाओं से सभी तुझे मनायँगे, सभी तुझे रिझायँगे। भगवन्! तेरा वह अजीव-सा मकान मन्दिर, मठ या विहार भी कहा जायगा, मसजिद के भी नाम से पुकारा जायगा, और चर्च का भी वही काम दिया करेगा। वहाँ हमहमा न होगा, तू-ही-तू होगा। ऐसी होगी उस विश्वधर्म के मंदिर की कुछ-कुछ रूप-रेखा। नक़शा आँखों के सामने है ही। मसाला सब जुट हो गया है। खड़ा भर.करना है। सो, उसे तूही खड़ा करेगा। साधकों को तेरा ही एक सहारा है। प्रभो! ध्वजारोपण-संस्कार तो तुझे ही अपने हाथ से करना होगा। वह सफ़ेद झंडा मजहब का नहीं, ईमान का होगा।

सक्रिय ज्ञान और सज्ञान कर्म का साधन प्रत्येक साधक के लिए अनिवार्य होगा। अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष के समन्वय-पथ परही हमें अब अपना जीवन-रथ ले

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