पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/३२२

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बस, तो अब चलो-

विश्व-धर्म की शरण में;

चलो, सब मिलकर उपासना करें-

विश्व-धर्म के मन्दिर में;

चलो, हम सब साधक प्राण-पण से लग जायें-

विश्व-धर्म के प्रचार में;

चलो, एक स्वर में बोलते चलें-

विश्व-धर्म की जय ।