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दूसरा अध्याय।


जब उसे इस बात का दृढ़ विश्वास हो जाय कि कोई निश्चय या कोई मत सच्चा है तब यदि वह उसके अनुसार बर्ताव न करे तो वह निरी कापुरुपता है-कोरी नासर्दी है। जिस बात के करने को आत्मा गवाही नहीं देती, जी नहीं चाहता, उसे करना डरपोकपन या कायरता के सिवा और क्या कहा जा सकता है? ऐसा काम हरगिज मनोनुकूल नहीं; हरगिज आत्मानुरूप नहीं। पहले लोग कस ज्ञानलम्पन्न और कम समझदार थे। इसलिए उन्होंने बहुत सी बातों को, जिन्हें हम अब अच्छा समझते हैं, नहीं प्रचलित होने दिया; उनके प्रचार में उन्होंने विघ्न डाला। इस बुनियाद पर, इस समय, जिन दातों का प्रचार इस लोक और परलोक में भी आदमियों के लिए लोग विश्वासपूर्वक लचसुच ही अनिष्टकारक या बुरा समझते हैं उनको रोकना नामर्दी का काम नहीं तो क्या है? यदि यह कहा जाय कि जो भूलें पुराने जमाने में लोगों ने की हैं वे हम न करें, इसलिए हमें सचेत रहना चाहिए तो ऐसी और भी तो वहुतली बातें हैं जिनके विषय में यही दलील पेश की जा सकती है। पुरानी गवर्नमेण्टों ने कितने ही विषयों में भूलें की हैं, पर वे विषय इस समय त्याज्य नहीं समझे जाते। उदाहरण के लिए उन्होंने बहुतसे ऐसे कर लगाये जो अनुचित थे और बहुतसी ऐसी लड़ाइयाँ लड़ी जो बेफायदा थीं अन्यायपूर्ण थीं। तो क्या कर लगाना अब हम बिलकुल ही बन्द कर दें; और, चाहे कोई जितनी छेड़ छाड़ करे, उससे क्या अब हम लड़ाई करें ही नहीं? आदमियों की, और गवर्नमेण्ट की, जितनी शक्ति हो उसका सबसे अच्छा उपयोग करना चाहिए। पूरा निश्चय, सर्वथा निःसन्देह निश्चय, या यकीन-कामिल कोई चीज नहीं। पर आदमी के सांसारिक काम चला लेने भर के लिए जितनी निश्चयात्मकता, जितनी असन्दिग्धता, या जितनी अप्रमादशीलता दरकार है उतनी संसार में अवश्य काफी है। मतलब भर के लिए वह जरूर विद्यमान है। अपने निर्वाह के लिए अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अपने सत या अपने निश्चयों को सच मानने में कोई हानि नहीं। अथवा यों कहना चाहिए कि उन्हें सच माने बिना काम ही नहीं चल सकता; उन्हें सच मानना ही पड़ता है। अतएव जो बातें हमको झूठ और हानिकारक जान पड़ती हैं उनके प्रचार द्वारा बुरे आदमी यदि समाज को बिगाड़ना चाहें और हम उनको रोकें, तो यह हरगिज न समझना चाहिए कि हम अनान्तिशील होने का दावा करते हैं। हम सिर्फ इतना ही करते हैं