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स्वाधीनता।


ठीक नहीं है-इसीसे वे उसे मंजूर नहीं करते। क्या तुम उनको ऐसा उन पेश करने से रोक सकोगे? क्या तुम उनका प्रतिबन्ध कर सकोगे? हरगिज नहीं। जो रुड़ि के दास हैं, जो रीतिरवाज के अभिमानी हैं, वे अपनी राय के अनुकूल प्रमाण देते समय इस आक्षेप से यथासम्भव जरूर फायदा उठाने हैं। जिस समय वे अपने मत के अनुकूल दलीलें पेश करते हैं उस समय वे उपयोगिता को सत्यतासे कभी अलग नहीं करते। अर्थात् उपयोगिता को सत्यता का अंश समझकर जो कुछ उन्हें कहना होता है वे कहते हैं। उपग्रोगिता और सत्यता को वे कभी भिन्न भिन्न नहीं समझते। उलटा वे यह कहते हैं कि हमारा मत सच है। इसीलिए उसको जानने और उस पर विश्वास करने की हम इतनी जरूरत समझते हैं। इस तरह के प्रमाण देने में रुड़मतवालों का प्रतिबन्ध न करना और उनके विरोधियों को वैसे प्रमाण देने से रोकना अन्याय है। ऐसी काररवाई से उपयोगिता की दलील का उचित विवेचन-उनका न्याय-सङ्गत फैसला-कभी नहीं हो सकता। जब कानून या जन-समुदाय का आग्रह किसी बात के सम्बन्ध में उसकी सत्यता को नहीं साबित करने देता तब यदि उसकी उपयोगिता या अनुपयोगिता के सम्बन्धमें कोई शङ्का-ससाधान करने लगा, तो लोग उसे बिलकुल नहीं बरदास्त कर सकते। किसी बात की सत्यता पर जब उनको कुछ भी कहने का मौका नहीं दिया जाता तब उसकी उपयोगिता पर वे क्यों कुछ सुनने लगे? बहुत हुआ तो वे इस बात को मंजूर कर लेते हैं कि किसी मत-विशेष-किसी खास राय-की अत्यावश्यकता को मान लेने या उसका धिक्कार करने से होनेवाले अपराध की मात्रा, हम जितनी समझते थे, उससे कम है।

जो बात उनको पसन्द नहीं है उसकी विवेचना करने और उसके विषय में साधकबाधक प्रमाण देने की इच्छा रखनेवालों को रोकने से बहुत नुकसान होता है। उनकी राय को-उनकी दलीलों को सुनने से बहुत अनिष्ट होने की सम्भावना रहती है। इस बात के अच्छी तरह ध्यान में आने के लिए उदाहरणों की जरूरत है। उदाहरण देकर विवेचना करने से यह बात और भी अधिक स्पष्ट हो जायगी और खूब अच्छी तरह ध्यान में आ जायगी। में, इस विषय में, ऐसे उदाहरण देना चाहता हूं जो मेरे बहुत ही कम अनुकूल हैं; अर्थात् जो मेरे बहुत ही कम फायदे के हैं। मैं जानबूझकर ऐसे उदाहरण चुनचुनकर देना चाहता हूं जिनकी उपयोगिता और सत्यता, दोनों