पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/७२

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दूसरा अध्याय।


ही का विरोध करनेवालों के खिलाफ बहुत ही मजबूत दलीलें लोग अपने पास तैयार समझते हैं। वे उदाहरण, ईश्वर के अस्तित्व में विश्वाल, परलोकके अस्तित्व में विश्वास और सदाचरणसम्बन्धी सर्वसम्मत बातोंपर विश्वास, ये तीन हैं। इन विषयों पर वादविवाद करनेवाले अप्रामाणिक विरोधी को बहुत फायदा रहता है। क्योंकि इन बातों पर जिनको पूरा पूरा विश्वास है ऐसे अप्रामाणिक विरोधी फौरन ही यह सवाल कर बैठते हैं (और जो लोग प्रामाणिकता की परवाह करते हैं वे अपने मन में कहते हैं) कि “क्या वे बात यही हैं जो तुम्हारी राय में इतनी निश्चित नहीं कि उनके विरुद्ध वादविवाद का प्रतिबन्ध कानून के द्वारा किया जाना मुनासिब हो? ईश्वर के अस्तित्व को मान लेना क्या उन्हीं बातों में से एक बात है जिनकी निश्चयात्मकता अर्थात् यथार्थता या सत्यता कबूल कर लेना अभ्रान्तिशील होने का दावा करना है? "ऐसे सवाल करनवालों की आज्ञा से मैं यह पूछना चाहता हूं कि कब मैंने कहा कि किसी नियम राय या सम्मति को निश्चित मान लेना ही (फिर चाहे इसका जो अर्थ हो) अभ्रान्तिशीलता का दावा करना है? मैंने यह कभी नहीं कहा। मैं यह कहता हूं कि किसी राय या नियम के विरुद्ध जिनको जो कुछ कहना है उनके कहने को न सुनकर उस राय या नियम को सबके लिए निश्चित मान लेने का जो लोग घमण्ड करते हैं वे मानों अभ्रान्तिशील होने का दावा करते हैं। याद रखिए, जो बातें खुद मुझे अत्यन्त निश्चित और अत्यन्त सच जान पड़ती हैं यदि उनके विपय में भी कोई वैसा व्यवहार करे, अर्थात् उनके विरुद्ध किसीको कुछ कहने का मोका न दे, तो मैं उसे भी उतना ही दोषी समझूँगा, कम नहीं। किसी सम्मति या निश्चय की केवल असत्यता ही के विपय में नहीं, किन्तु उसके बुरे परिणाम के विषय में भी और केवल बुरे परिणाम ही के विषय में नहीं, किन्तु उसकी अधार्मिकता और भ्रष्टता के विषय में भी-किसीका चाहे जितना दृढ़ विश्वास हो और उस विश्वास को देश के जनसमुदाय और सहयोगियों का चाहे जितना आधार हो, तो भी जिनकी राय वैसी है उनको उसे सप्रमाण सत्य सिद्ध करने का जो लोग मौका न देंगे वे अभ्रान्तिशीलता ग्रहण करने के दोष से हरगिज नहीं बच सकेंगे। उस सम्मति को नीति-विरुद्ध, अधार्मिक या भ्रष्ट कहदेने ही से अभ्रान्तिशीलता ग्रहण करने का आरोप कम नहीं हो सकता; और न वह कम सदोप या कम हानिकारक ही