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स्वाधीनता।


कालवरी * नामक पहाड़ी पर हुआ था। जिस पुरुष (अर्थात् प्राइस्ट) से मेरा अभिप्राय है वह ऐसा विलक्षण महात्मा था कि जिन्होंने उसके आचरण को देखा और जिन्होंने उसकी बातचीत सुनी उनके हृदय पर उसकी तेजस्वी नीतिमत्ता का ऐसा उत्तम नक्श उठ आया-ऐसा अच्छा चिह्न हो गया-कि आज लगभग दो हजार वर्ष से लोग उसे देवता मान रहे हैं, उसे सर्वशक्ति मान् समझ रहे हैं। पर ऐसे महापुरुप का बड़ी ही बुरी तरह से, बड़ी ही बेइजाती से, वध किया गया। जानते हो क्यों उसका वध हुआ? उसे लोगों ने धर्मनिन्दक समझा! वह महात्मा आदमियों का बहुत बड़ा हितचिन्तक था। पर उन्होंने उसे नहीं पहचाना। यही नहीं, किन्तु वह जैसा था उसका बिलकुछ ही उल्टा वह लोगों को मालूम हुआ। उन्होंने उसके साथ इस तरह का बर्ताव किया जिस तरह का बर्ताव एक महा अधार्मिक आदमी के साथ किया जाता है। वे उसके साथ इस बुरी तरह से पेश आये कि वे, इस समय खुद ही अधाम्मिक माने जाते हैं। इन महाशोचनीय घटनाओं के कारण, विशेषकरके पिछली घटना के कारण, आदमियों का दिल कभी कभी ऐसा क्षुब्ध हो उठता है, कभी कभी उनको यहां तक सन्तोष होता है, कि जिन अभागी लोगों के हाथ से ये दुष्कर्म हुए उनका विचार करते समय उनको अपराधी ठहराते समय-वे न्याय-अन्याय को बिलकुल ही भूल जाते हैं। अर्थात् वे यहांतक कुपित हो उठते हैं कि अन्याय करने लगते हैं। जिन लोगों ने ऐसे ऐसे दुष्कर्म किये वे दुराचारी या दुर्जन न थे। मामूली तौर के जैसे आदमी होते हैं वैसे ही वे भी थे; उनसे बुरे न थे बुरे तो क्या, किन्तु यह कहना चाहिए कि मामूली आदमियों से किसी कदर वे अच्छे थे। उस समय लोगों के मन में धर्म, नीति और स्वदेशाभिमान की जितनी मात्रा जागरूक थी उतनी, किम्बहुना उससे भी कुछ अधिक, इन हतभागियों के मन में भी थी। इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि अधार्मिक, दुराचारी या अनीतिमान होने के कारण यह इन्होंने ऐसे ऐसे जघन्य काम किये। नहीं, वे उस तरह के आदमी थे जिस तरह के चाहे आजकल उत्पन हों चाहे और कभी अपना जीवन निर्दोपरीति पर, इज्जत के साथ, व्यतीत करते है।


  • जेन्युशलम के पास, थोड़ी दूर पर, कालवरी नाम की एक पहाड़ी है; वहीं पर ईसा मसीह को सूली दी गई थी।