पृष्ठ:हड़ताल.djvu/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
अङ्क २]
[दृश्य २
हड़ताल

फिर हम देखेंगे कि कैसे तुम्हारो शतें नहीं पूरी होतीं। बोलो क्या मंजूर है? हम से मिलकर विजय पाना चाहते हो, या इसी तरह भूखों मरना?

[मजूरों में देर तक काँव काँव होती है]

जागो

[गुर्राकर]

वही बातें कीजिए जिन का आप को ज्ञान है।

हारनेस

[ऊँचे स्वर से]

ज्ञान?

[उद्गार को रोक कर]

मित्रवर, मुझ से कोई बात छिपी नहीं है। जो कुछ तुम पर बीत रही है, वह मुझ पर बीत चुकी है, उस वक्त बीत चुकी है जब-

[एक लौंडे की तरफ इशारा करके]

मैं उस लौंडे से बड़ा न था। तब पंचायतें वह न थीं जो आज हैं। ये कैसे इतनी बलवान हो गईं? इसी

१४५