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अङ्क २]
[दृश्य २
हड़ताल

[तीक्ष्ण व्यंग के साथ]

"लेकिन जब प्रकृति कहता है, बस! तो हमें उस की आज्ञा माननी चाहिए।" मैं तुम से कहता हूँ क्या आदमी प्रकृति से यह नहीं कह सकता "अगर तेरा क़ाबू हो तो हमें यहाँ से जौ भर हटा दे?"

[अहङ्कार के भाव से]

उन का सिद्धान्त उन का पेट है। मगर टॉमस साहब कहते हैं-"आदमी निष्कपट, सच्चा, न्यायी और दयालू होकर भी प्रकृति की आज्ञा-पालन कर सकता है"। मैं तुम से कहता हूँ प्रकृति न निष्कपट है, न सच्ची, न्यायी न दयालु। तुम लोग जो पहाड़ी के ऊपर रहते हो और बर्फ़ीली रात को अंधेरे में थके माँदे घर जाते हो-क्या तुम्हें क़दम क़दम पर दाँतों पसीना नहीं आता? क्या तुम इस दयालु प्रकृति की कोमल दयालुता के भरोसे आराम से लेटते हुए जाते हो? ज़रा एक बार आज़माकर देखो और तुम्हें मालूम हो जायगा कि प्रकृति कितनी दयालु है।

[घूँसा तान कर]

प्रकृति की जो यह सेवा करता है वही मर्द है। टॉमस साहब फरमाते हैं-घुटने टेक दो, सिर झुका दो, यह व्यर्थ

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