पृष्ठ:हड़ताल.djvu/२०३

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अङ्क ३]
[दृश्य १
हड़ताल

एनिड

तब तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आती।

एडगार

शायद!

एनिड

अगर अपनी ख़ातिर करना पड़ता तो और बात थी। लेकिन अपने बाप के लिये मैं इसे शर्म की बात नहीं समझती। मालूम होता है तुम इस का मर्म नहीं समझ रहे हो।

एडगार

खब समझ रहा हूँ।

एनिड

उनको बचाना तुम्हारा मुख्य धर्म है।

एडगार

कह नहीं सकता।

१९४