पृष्ठ:हड़ताल.djvu/२५०

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अङ्क ३]
[दृश्य १
हड़ताल


बदला। और न बदलूँगा। कहा जाता है कि स्वामी और सेवक बराबर है। लचर है। एक घर में केवल एक स्वामी हो सकता है। जहाँ दो आदमी होंगे उनमें जो अधिक योग्य होगा उसी की चलेगी। कहा जाता है कि पूँजी और श्रम के स्वार्थ में कोई अन्तर नहीं है। लचर बात! उनके स्वार्थों में धुओं का अन्तर है। कहा जाता है कि बोर्ड कल का सिर्फ एक पुर्जा है। लचर बात! हमी कल हैं। हमी इसका मस्तिष्क हैं और इसकी नसें हैं। यह हमारा काम है कि इसको चलाएँ और बिना किसी डर या रियायत के इसका निश्चय करें कि हमें क्या करना है। मॅजूरों से डरें! हिस्सेदारों से डरें! अपने ही साया से डरें। इसके पहिले मैं मर जाना चाहता हूँ।

[वह दम लेता है और अपने पुत्र से आँखें मिला कर फिर कहता है]

मजूरों के साथ निबटारा करने का सिर्फ एक रास्ता है और वह है दमन। आजकल की अधकचरी बातों और अधकचरे व्यवहारों ही ने हमें इस दशा में डाल दिया है। दया और नर्मी जिसे यह युवक अपनी समाज-नीति कहता

है, इसकी जड़ है। यह नहीं हो सकता कि तुम चने भी

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