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अङ्क १]
[दृश्य १
हड़ताल
ऐंथ्वनी
खूब जानता हूँ।
एनिड
आप नहीं जानते, दादा; अगर आप जानते तो आप-
ऐंथ्वनी
तुम खुद इस प्रश्न की सीधी सादी बातों को नहीं जानती हो। अगर हम मज़दूरों की शर्तों को आँखें बन्द करके मानते चले जायँ तो समझती हो तुम्हारी क्या दशा होगी? यह दशा होगी।
[वह अपना हाथ गले पर रखता है और उसे दबाता है।]
पहले तुम्हारे कोमल मनोभाव बिदा हो जायँगे। तुम्हारी सभ्यता और तुम्हारी सुख सामग्रियों का कहीं पता न लगेगा।
एनिड
मैं नहीं चाहती कि समाज में भिन्न भिन्न श्रेणियाँ बन जायँ।
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