पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/११३

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5o ] लगमग वर्तमान- ये प्रसिद्ध वैष्णव साधु थे, सं० १८३५, लि. का० सं० १८६०, वि० प्रियादोस के गुरू, स्वामी अग्रदास के शिष्य, चौरासी नरकों का वर्णन । दे० (छ-६३ वी) ध्रुवदास के समकालीन । नासिकेत पुराण भाषा-नंददास कृत. लि. भक्तमान दे० (ज-२११) (क-१५) का०सं० ११३, वि० नासिकेत की कथा । दे० रामचरित्र के पद दे० (ज-२०२) (ज-२०८ ए) नारायणदास-शिवदयाल के पिना, प्रयाग | निकुंज विलास-महाराज सावंतसिंह (नागरी- निवासी, जाति के स्वत्री; सं० १८६३ के पूर्व दास) कृत, नि०कास० १७६४,वि० राधाकृष्ण वर्तमान थे। दे० (ज-२६३) का निकुंज-विलास घर्णन । दे० (ख-११६) नारायणदास-सं० १८२६ के लगभग वर्तमान; | निघंटु भाषा--मदनपाल कृत, लि. का० सं० कुछ समय तक ये चित्रकूट में रहे। १९३१; वि० श्रोपधियों के नाम तथा उनके छदसार दे० (छ- ए) गुणों का वर्णन । दे० (ज-१७६) मापा भूपण की टीका दे० (छ-७- घी) निजामतखाँ-औरगजेब बादशाह के सूवेदार; पिंगल मात्रा दे० (छ--- सी) कवि काशीराम के श्राश्रयदाता थे । दे०(घ-७) नारायणदेव-सं० १४५३ के लगभग वर्तमान नित्यलीला'-हरीराम .(रसिक प्रीतम या रसिक इनके विषय में और कुछ ज्ञात नहीं। राय) कृन वि० वल्ल भी संप्रदाय द्वारा श्रीकृष्ण हरिचद पुराण कथा दे० (-४) की सेवा की रीति का वर्णन । दे० (क-३८) नागयण लीला-माधवदास कृत, वि० नारायण नित्य-विलास-ध्रुवदास कृत; वि० राधाकृष्ण के अवतारों की कथा'। (.-१७७ ए) का रहस्य वर्णन । दे० (ज-७३) नारी-प्रकरण-नवलसिंह (प्रधान) कृत, लि । निन्य विहारी जुगलध्यान-भगवत रसिक कृत; का० स० १६३२, वि० नाडीमान का वर्णन । वि० राधाकृष्ण की झुगल मूर्ति तथा वृंदावन समाज का ध्यान वर्णन । दे० (क-३०) नासकेत-चरणदास कृत; लि० का० सं०१८४, नित्यानंद-श्यामशरणदास (भवमोगी) के वि० नासिकेत पुराण का भाषानुवाद । दे० शिष्य, सं० १८०७ के लगभग वर्तमान । ममनिवारण दे० (च-४१) (च-१८) नासिकेत उपाख्यान-सदल मिश्र कृत; नि० निमादित्य-श्री मट्ट के गुरु । दे० (क-३६) का० सं० १८६०, वि० रघु की कन्या चंद्रावती निरंजनदास--सं० १७५ के लगभग वर्तमान; के साथ उहालक अपि के विवाह की तथा अयोध्या से ४० मील दक्षिण गोमती नदी के उनके पुत्र नासिकेतु के परलोकवर्णन की किनारे श्रानंदपुर में निवास करते थे; इनके पिता का नाम बसंत था और ये पीताम्बर के कथा । दे० (स-३४) शिष्य थे। नासिकेत की कथा-प्रेमदास कृत, नि० का० हरिनाम मान्ना दे० (छ-२०२) दे० (छ-5६ )