पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/१२१

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के पश्चात् बैठे। जैनमतानुसार पच विधि पूजा का वर्णन । दे० लगभग वर्तमान; कवि जैकहरि के माध्यदाता। (क-२१३) दे० (घ-११७) पुहकर-सं० १६७३ के लगभगवर्तमान; कायस्थ, पृथ्वीराज-राजपून घंश में चौहान घराने में प्रतापपुरा (मैनपुरी) निवासी; मोहनदास अंतिम भारत सम्राट् थे, दिल्ली भीर मजमेर के पुत्र थे। इनकी राजधानी थी. चन्द बरदाई इनके रसरल दे० (च-2) (छ-२०८) मत्री और प्रसिद्ध कवि थे महोया के चन्देल। राजा परमाल और गजूरपुर नथा कालिंजर पूजा विभास-अन्य नाम पूजा विलास; रसिक- फ राजाओं को इन्हों ने पगात किया; इन्हों. दास कृत, वि०पूजाविधि वर्गान। दे० (ग-8) ने अपने को विवाह किए जिनमें से कनीज (छ-२ डी) के राजा जयनन्द की कन्या सयोगिता के पूरण (मिश्र)-इनके विषय में कुछ भी बात नहीं। राग निरूपण दे० (उ-१२) लाने में इनके यदुत से घोर सामंत मारे गए; नादोदधि ( नादार ) दे० (-४३) ये अपना बहुत सा समय शिकार और विलास में बिताने थे, इन्होंने मुहम्मा गौरी को कई पूरणदास-खेडापा के महत; दयालदास जी धार पराजित करके छोड़ दिया, अतिम युग २५ में गही पुरणदास की वानी दे० (ख-६५) में ये पराजित हुए और पकड़े गए । दे० (क-५६) (क-६३) (क-६२) (स-३% पूरणदास-बुरहानपुर के महंत के शिष्य और कबीरपंथी साधु थे 1 नगझरिया निवासी (ख-३६) (म्र-४०)(म्न-४१) (ख-४२) सं० १८हट के लगभग वर्तमान । (स-४३) (ग्न-४४)(ख-१५) (ख-४६) फनीर के बोनक की टीका दे० (छ-२०६) (ख-५७) (ग-2) (छ-२४०) पृथ्वीराज-दनिया नरेश राजा दलपति राय के पूरणदास जी की वाणी-पूरणदास कृत, वि० • शान, भक्ति और उपदेश वर्णन । दे० (ख-६५) पुन: स. १७६६ के लगभग वर्तमान; कवि अक्षर अनन्य (अनन्य ) के आश्रयदाता थे। पूर्व शृंगार खंड-नवलसिंह (प्रधान) कृत; लि० दे० (च-१)(छ-२) का० सं० १६५५, वि० रामविहार वर्णन । दे० पृथ्वीराज (प्रधान)-जुदेलस्नगउ नियासी; इनके (छ-७६) विषय में और कुछ भी शात नहीं। शालिहोत्र दे० (छ-६४) पृथुकथा-जयसिंह जूदेव कृत; वि० राजा पृथु को कथा । दे० (क-१४७) पृथ्वीराज (राठौर)-बीकानेर नरेश राजा पृथ्वीचंद्र गुणसागर गीत-(२० प्रभात ) वि० कल्याणमल के पुत्र; बादशाह अकयर के दर- जैनमत के ऋपि पृथ्वीचद गुणसागर का घार में थे, महाराणा प्रतापसिह के बड़े हितैषी और उत्तेजना देनेवाले कवि थे, सं० वर्णन । दे०(क-६५) १६३७ के लगभग व मान ।। पृथ्वीपालसिंह-पटियाला नरेश; सं० १६० के श्रीकृ'या देव निशि की दे० (क-29)