पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/१३३

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श्री खगच्छीय ज्ञान मन्दिर, जयपुर [ १०० ] पीपरवरगमीय ज्ञान माहिषयपुर ममपरीक्षा दे० (छ- सो) श्रार उत्तराधिकारी स्वामी हरिदास के शिष्य; परतीत परीक्षा दे० (छ-डो) बिहारिनदास व नंददास के गुरु: गिरिधर वालकृष्ण-जाति के कायस्थ; तेजसिंह के पिता, गोस्वामी के पिता, सं० १६०७ के लगभग सं० १८२७ के पूर्व वर्तमान 1 दे० (च-३४) वर्तमान थे, हिंदी में गद्य लिम्रनेवालों वालकृष्णदास-गोस्वामी गिरधरदास के शिष्य इनका नम्बर दूसरा है। (छ-२००) (च-६१) वल्लभ संप्रदाय के अनुयायी; सं० १८८५ के रंगार रस मरन दे० (ज-३२) लगभग वर्तमान । चिट्ठल विपुल जी की नानी दे० (च-६०) सूरदास के रष्टिकूट (मटीक) दे० (क-६) विट्टल विपुलजी की बानी-विट्ठल विपुल ज बालमुकुंद-लीला-भीष्म कवि कृत; वि० भाग कृत; वि० राधा और श्री कृष्णजी के शृंगार घत के दशम स्कंध पूर्वाधं का भाषानुवाद । पद । दे० (च-६०) दे० (घ-१२) विसातिनलीला--प्रेमदास कृत, वि० श्रीकृप बाल-विनोद-महाराज सावतसिंह (नागरी का घिसानिन के वेश में राधा के पास जा दास) कृत, नि० का० सं० १८०६, वि० कृष्ण का वर्णन । दे० (ज-२२६ धी) की वाल्यावस्था का वर्णन । दे० (ख-१२८) विहारिनिदास-बिट्ठल विपुल जी के शिष्य और वाल-विवेक-जनार्दन भट्ट कृत; वि० ज्योतिप। सरसदास, नागरीदास (महाराज सावंतसिंह दे० (छ-२६७ ए) नागरीदास से भिन्न) के गुरु; २७ ची शताब्द वामदेव-जाति के महाराष्ट्र ब्राह्मण, प्रियादास के पूर्वार्ध में हुए । (छ-२२६) के पिता; सं० १६१० के पूर्व वर्तमान । दे० श्री रिहारिनदास की चानी दे० (व-६१) (ख-१६) (च-३१) समय प्रबंध दे० (ज-३१) बाहुक-गोखामी तुलसीदास कृत; लि० का० विहारिनदास की बानी-बिहारिनदास कृत; सं० १८५७. वि० हनुमान की स्तुति । वि० श्री राधा और कृष्ण के श्रृंगार के पद । दे० (ज-३२३ के) दे० (च-६१) वाहु-विलास-राजसिंह कृत, लि० का० सं० | विहारी-इनके विषय में कुछ भी भात नहीं। - १७६२: वि० कृष्णाऔर जरासघ का युद्ध वर्णन। नमशिस रामचद्र को दे० (ज-३०) दे० (ग-७४) विहारीदास-आगरा निवासी; सं० १७५८ के वाहु-सर्वांग-तुलसीदास कृत; लि० का० सं० लगभग वर्तमान, जैनधर्मानुयायी। १८८२, वि० हनुमान जी का स्तोत्र । दे० संबोधि पचासिका मापा दे०(क-२१६) (घ-१३) विहारीदास-माधोराम के घशज, जाति के विठ्ठलदास-उप० विट्टलेश्वर, गोस्वामी विट्ठल- कायस्थ, कृष्णगढ़ राज्य के सभासद हैं। दे० नाथ और विट्ठल विपुलजी, वल्लभाचार्य के पुत्र (ग-४३)