पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/१७

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1 ( १४ ) (४) इसकी भाषा बहुत परिमार्जित और उपर्युक्त कारणों से भूपति का कविता काल आधुनिक ब्रज भाषा के ही समान है। संवत् १७३४ के लगभग ही माना गया है। (उ) इसमें "ब्रजभापा" और "गुसाई" शब्दों (२) (ज-३६) के चंदहित और (ज-४३) के का प्रयोग हुआ है जो कि सोलहवीं शताब्दी से चंदलाल दो कवि माने गए है। परंतु दोनों कवियों पूर्व व्यवहार में नहीं पाते थे। की (१) अभिलाप पचीसी, (२) समय पचीसी, () पंचांग धनाकर देखने से सं० १३४४ का , (३) भावना पचीसी ये तीनों पुस्तकों एक ही हैं । बुद्धवार अशुद्ध और सं० १७४४ का चंद्रवार शुद्ध । केवल कवि के नाम-भेद के कारण चे भूल से भिन्न भिन्न कवि माने गए हैं। दोनों का उपनाम चंद निकलता है। ही है, कविता काल भी एक ही है; अनः दोनों को (ए) उर्दू प्रतियाँ हिंदी प्रतियों की अपेक्षा- भिन्न कवि न मानकर एक ही मान लिया गया है। पुरानी मिलती हैं जिनमें निर्माण काल सं० १७४४ (३) (ज-२७२) में लालचंद्रिका लाल कवि दिया हुआ है । हिंदी और उर्दू प्रतियों में निर्माण । कृत यतलाई गई है। लाल कवि संवत् १८३८ से काल इस प्रकार है:- हिंदी प्रति में-संमत् तेरह सौ मये चारि पूर्व यनाररा नरेश महाराज चेनसिंह के आश्रित थे; परंतु लाल चंद्रिका का निर्माण काल सं० १८७५ अधिक चास्तीस। मरगेसर सुध एकादसी वुधवार रजनीस ॥ है । पंडित लल्लू जी लाल ने भी उससे पूर्व एक यार अपने प्रेस में ही इसे छपवाया था। संवत् उर्दू प्रति में संवत् सत्रह सै भये चार अधिक! १८७५ में लल्लूलाल का अवस्थित होना भी ठीक है; चालीसा और लाल कवि का ० वर्ष से अधिक अवस्था मृगसिर की एकादसी सुद्धवार रजनीस ॥' होने पर विहारी सतसई जैसे शृंगारिक ग्रंथ पर (ो) उर्दू से हिंदी लिपि में लिखने और लिपि- टीका करना न्यायसंगत नहीं माना जा सकता कर्ता के काशीनिवासी होने के कारण बहुत से और न विचार में ही पाता है। अत: लाल चंद्रिका शब्दों को विगाड़कर अवधी रूप दे दिया गया है; | का लल्लूलाल कृत मानना ही उचित है। अर्वाधी, जबर, बहीनी और चारी इत्यादि इसके (४) (ज-२६७) में प्रेम रत्न का रचयिता रतन प्रत्यक्ष उदाहरण है। उक्त भागवत में श्रादि से अंत कवि और निर्माण काल संवत् १८४४ माना है । तक ऐसे प्रयोग भरे पड़े हैं। दीर्थ ऊकार का | परंतु यह प्रेमरत्न संवत् १६४४ में राजा शिवप्रसाद प्रयोग इस प्रति में कहीं नहीं किया गया; अतः की दादी वीयी रतन कुँवर ने बनाया था। इस भाषा प्राचीन सी मालूम होती है, परतु यथार्थ | ग्रंथ का कुछ अंश राजा शिवप्रसाद कृत 'गुटका मैं परिष्कृत है। (छ-१३८) में वर्णित रामचरित्र में बीवी रत्न कुँवरि के जीवन चरित्र के साथ रामायण भी उक्त भूपतिकृत ही बताया गया है। उद्धृत है। यह ग्रंथ अलग पुस्तकाकार भी छप उसमें संवत् श्रादि कुछ नहीं है और न यह इन्न । धुका था। अतः इस ग्रंथ को रतन कवि कृत और भूपनि का बनाया हुआ ही प्रतीत होता है । नि० का० सं० १८८८ मानना नितांत म्रममूलक है।