पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/१८९

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[ १५६ विज्ञान गीता--केशवदास कृत; नि० का० स० विनयपत्रिका---गोस्वामी तुलसीदास २६६७, लि० का० स० १८४७, वि० सांसारिक लि० ० सं० १८८४; दूसरी प्रति का १८७85 वस्तुओं और सुक्षों की श्रसारता का योग वि० श्री राम, सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुम, पशिष्ठ के आधार पर वर्णन । दे० (क-२) हनुमान, महादेव और गगा आदि की स्तुति (फ-५५)(ङ-१२७) और प्रार्थना के पद। दे० (छ-२४५ जी) विज्ञान भास्कर-नवलसिंह (प्रधान) कृत; (ज-३२३ पल) नि० का० सं० १८७८, लि० का० सं० १८८४, विनयपत्रिका की टीका-महाराज रतसिंह वि० आत्मज्ञान घर्णन । दे० (छ-७४ डी) कृत, नि० का० सं० १६०८; वि० गोस्वामी विदुर प्रजागर-कृष्ण कधि कृत; नि० का० तुलसीदास की विनयपत्रिका पर टीका। सं० १७६२; लि० का० सं० १६०५, और दूसरी दे० (छ-१०४) प्रति का १६३२, वि० महाभारत की विदुर- विनयमाल-दयादास कृत; लि० का० सं० १६५६; नीति का भापानुवाद। दे० (ज-७) वि० दोहों में ईश्वर स्तुति और प्रार्थना । (छ-६३ घी) दे० (छ-२५) विधा कमल-जैन मातानुयायी; इनके विषय विनय समुद्र-बीकानेर निवासी, सं० १६६१ के में और कुछ भी ज्ञात नहीं है। लगभग वर्तमान; इनकी गुरु-परंपरा इस भगवत गीत दे० (क-६७) प्रकार है:- विद्वद्विलास-ब्रह्मदत्त कृत; नि० सं० १८६१, लि० का० सं० १८६१, वि० खल, रेणप्य सूरि सजन, सूम और धनी आदि का वर्णन । दे० 1 कफसुरि (ङ-३४) विद्वानपोदतरंगिनी-सुवंश शुक्ल कृत। दे० (ज-३०६) सिद्ध सूरि 1 चिनय नव पचक-रामगुलाम कृत, लिका संग्रह विजय सं० १६५७, वि० रामचंद्र, लक्ष्मण और सीता आदि की स्तुति के पद । दे० (छ-२१३) 1 विनय पचीसी-रामकृष्ण चौवे कृत; वि० कृष्ण की स्तुति । दे० (छ-१०० यी) दे० (ख-७४) विनयपत्रिका-महाराज रघुराजसिंह कृत; | विनयसार-सुदरदास कृत, नि०का० सं०१८५७, नि० का० स० १६०७, वि० श्री रामचन्द्र के वि० स्तुति और प्रार्थना । दे० (घ---) प्रशंसात्मक पद । द० (क-४६) विनोद काव्य सरोज-श्रीपति कवि कृत, वि० . . केशी गुरु का देवगुप्त गुरु हर्प समुद्र विनय समुद्र