पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/१९५

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" [ १६२ ] वैद्य मनोहर–पहार सैयद कृत, वि० वैद्यक। शिष्य; रामानुज संप्रदाय के वणव थे। ३० दे० (छ-३०५) (क-43) वैद्य रन-जनार्दन म कृतलि० का०सं० १६००, वैष्णवदास-प्रियादाम के पुत्र, सं० ११४ के - दूसरी प्रति का लि० का० सं० १६१८, वि० लगभग वर्तनान, श्रृंदावन निवासी थे। वैद्यक 1 दे० (ग-१०५)(छ-२६७ थी) गीतगोविंद भाषा दे० (ज-३२४) वैद्य-विनोद-हरिवंश राय कृत; वि० घैद्यक । मसमाग्न प्रसग दे० (ग्न-५४) दे० (छ-२६१ ५) मत्तमात माहात्म्य दे० (छ-२४७ ) भक्त मरोधिनी टीश दे० (-3) वैनी प्रवीन-कान्यकुब्ज ब्राह्मण वाजपेयी, लख- व्यंगविलास-सरदार कधि त नि० का० सं० नऊ निवासी, सं० १८७ के लगभग वर्तमान, १६१६. लि० का० सं०१४५३, वि० नायिका- नवलकृष्ण के आश्रित थे। भेद घर्णन । दे० (ज-२-३ यी) नवरस तरग दे० (ज-१६) व्यंग्यार्थ कौमुदी-प्रताप (सादि) कृत; नि० का० वैराग्य तरंग-अक्षर अनन्य (अनन्य ) कृत, सं० २८०२, वि० नायक और नायिका-भेद चि० वैराग्य । दे० (छ-२जे) वर्णन । दे० (घ-५२)(छ-83जे)' वैराग्य दिनेश-दीनदयाल गिरि कृत, नि० व्यास जी-सं० १६१२ के लगभग वर्तमान; का० सं० १६०६, वि० झोन, पदले श्रोइया के निवासी थे, पीछे वृंदावन में और ऋतुओं का वर्णन । दे० (ज-७४ वी ) साधु होकर रहने लगे थे, ये राधावल्लभी वैराग्य निर्णय- य-परशुराम कृत्त; वि० संसार संप्रदाय के घेणव थे, इन्होंने हरित्यासी पंथ की अनित्यता और पुनर्जन्म के दु.खों से की स्थापना की थी, देव कवि के गुरु थे। बचने के उपायों का वर्णन । दे० (क-७५) वैराग्य मंजरी-महागज प्रतापसिंह कृतः नि० व्यास जी फी यानी दे० (ज-३३२५) का० सं० १८५२, वि० भर्तृहरि के बैराग्य (छु-१९% सी) शतक का भापानुवाद । दै० (छ-२०५ सी) रागमाला दे० (-१२% ए) ‘वैराग्य संदीपनी-गोस्वामी तुलसीदास कृत, व्यासनी के पद (पदारती) दे०(८-११८ धी) लि० का० सं० १८७६, वि० वैराग्य के लक्षणों (ज-३३२ धी) का वर्णन। दे० (क-७) (घ--१) (छ-२४५६) व्यास चरिन-राजा जयसिंह जूदेव कृत; वि० वैरीसाल-दे० "वैरीसाल" (छ-:३२) (ज-१३) महर्षि वेद व्यास का जीवन-चरित्र । दे० (क-२५२) वैशाख माहात्म्य-कुठमणि कृत; लि० का० सं० व्यासजी की वानी-व्यास जी कृत, वि० व्यास १७६६ । दे०(छ-५ए) दे० "वैसाखमाहात्म्य ।" जी की शिक्षा और श्रीकृष्ण विहार वर्णन । वैष्णवदास-मिहीलाल के गुरु, जानकीदास के दे० (छ-११८ सी) (ज-३३२५) घेराग्य तथा रस