पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/२२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ १८ ] - वि० श्रीकृष्ण लीला सबंधी पदों का संग्रह। घर नयगिय दे० (ज-२६) दे० (छ-२४४ सी) (-२३ ) (ट-२४२) सेवकगम-सं० १८११ के पूर्व वर्तमान इनके विषय में और कुछ भी मात नहीं। 'सूरसागर सार-सूरदास कृत; वि०मान, वैराग्य और भक्ति का वर्णन । दे० (ज-३१३) यशिह गम का मवाद दे० (ज-80) सूरसिंह-नरहरिदास के समकालीन और पाश्रय- सेवक वानी की टीका-सर्व सुखवास - कृतः दाता; जोधपुर नरेश, महाराज-कुमार गजसिंह लि० का० सं० १४५४, यि० सेवक बानी की के पिता, सं० १६७४ के पूर्व वर्तमान थे। टीका, इसमें राधावल्लभी संप्रदाय के सिद्धांता दे० (ग-२०) (ग-86) (ज-२१०) का वर्णन है। दे० (प्र-२८५) सूबासिंह-ओहल (खेरी) के राजा; सं० १८६४ | सेवक वानी को सिद्धांत----स्वामी यल्लमदास के लगभग वर्तमान; सुवंश शुक्ल के आधय कृत, वि० राधाममा बिस्लाम और राधावामी दाता । दे० (अ-३०६) सिद्धांना का वर्णन । दे० (प्र-३२५) सेनापति-परशुराम के पौत्र, जाति के कान्य- | सेवक बानी फल स्तुति-वृदावनदास कृत, लिर कुब्ज दीक्षित ब्राह्मण, गगाधर के पुत्र, जन्म का० स० १८४३, वि० सेवक पानी के माहा का० सं० १६८४, अनूप शहर (चुलन्द शहर) त्म्य का वर्णन। दे०(ज-३३१ डी) निवासी; हीरामन दीक्षित के शिष्य; अंत सेवक बानी सटीक रसिक मेदिनी-हरिलाल समय में संन्यासी होकर वृदावन में रहने लगे व्यास कृत, नि० का० स०१३७, लि. का० थे, कविता का० सं० १७०६ ॥ स. १९१६ वि० राधावल्लभी संप्रदाय के कवित्त रमाकर दे० (ज-२८७), सिद्धांतों का वर्णन । दे० (ज-११४) पटऋतु कवित्त दे० (उ-५१) सेवहित-दितहरिवंश के अनुयायी या शिष कवित्त दे०(छ-२३१) में से थे, वृदावन निवासी। सेवक-इनके विषय में कुछ भी शात नहीं। पानी दे०(छ-२३२). अकयर नामा दे० (छ-३२६) सेवादर्पन-प्रियादास कृन, नि० का० स० १६०५. सेवक चरित्र-भगवत मुदित कृत, वि० राधा वि० राधाकृष्ण को सेवा तथा पूजा की,विधि घल्लभी सेवक जी की कथा का वर्णन । दे० का वर्णन। दे० (ज-२३१ बी) (ज-२३ धी) सेवादास-कडा मानिकपुर के मलूकदास वे सेवकराम-असनी (फतेहपुर ) निवासी, ऋषि- शिप्य; १७ ची शताब्दी में वर्तमान थे। नाथ के प्रपौत्र और ठाकुर कवि, के पात्र; परमय की बारहमासी दे० (छ-३२७५) जाति के कान्यकुब्ज ब्राह्मण, काशी नरेश के परमार्थरमैनी दे० (छ-३२७ घी) भाई याय् देवकीनदनसिंह के आश्रित, १६वीं सेवादास की पानी दे० (ज-२८८) शताब्दी में पर्नपान थे। सेवादासकी परचई-रूपदास कृत; नि० का०