पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 (२०) इस छन्द से यह भली भाँति विदित होता है मतिराम ने अपने वंश का परिचय कुछ कि मतिराम ने इसे महाराज शियाजी, जयसिह विस्तार से दिया है। यहाँ तक कि अपने पितृव्य और जसवंतसिंह तथा राणा प्रताप के मरने के | (चचा ) प० श्रुतिधर तक का उल्लेम्स किया है; अनंतर रचा है। बूंदी नरेश से ये कुछ असंतुष्ट फिर अपने सहोदर अग्रज यधुभूषण जैसे.सुप्रसिद्ध से प्रतीत होते हैं, क्योंकि इस छंद में उनकी चर्चा | कवि का जिक तक न करने, यह कभी सभव न नहीं की गई है। स्यात् राब राजा भाऊसिंह के था इससे भी यही प्रतीत होता है कि भूषण और मरने के कारण उनका वर्णन न किया हो; क्योंकि मतिराम सहोदर बंधु न थे। दोनों सबंधी या घनिष्ट इस छंद में मतिराम ने अपने जीवित प्राश्रय मित्र अथवा गुरुभाई हो तो हो सकता है, क्योंकि दाताओं का ही वर्णन किया है, विशेष कर श्री ) दोनों को कविता बहुत कुछ मिलती जुलती है, नगर (बुंदेलखंड ) नरेश फतेह साहि और स्वरुप | जैसा पहले ही बतलाया जा चुका है। सिंह बुंदेले की ही विशेष प्रशंसा की है । संभव है, इस प्रमाण से यह निश्चित हो जाता है कि राव राजा भाऊसिंह के स्थानापन्न अनिरुद्धसिंह ललितललाम, रसराज, छंटसार, पिंगल तथा वृत्त- का धर्ताव उनके साथ अच्छा न रहा हो जिसके | कौमुदी के रचयिता महाकवि मतिराम ही है। कुछ स्थानिक राजकीय कारण भी हो सकते हैं; अन्य कोई मतिराम वृत्तकौमुदी के रचयिता नहीं और इसी लिये भाऊसिंह के मरने पर वहाँ से चले हो सकते। आप हो। भूषण यूँदी जाने पर राव राजा युद्ध. जय यह प्रमाणित हो गया कि वृत्तकौमुदी के सिंह का बर्ताव संतोषजनक न होने के कारण कुछ रचयिता प्रसिद्ध महाकवि मतिराम ही तो दिन ठहरकर ही चले आए थे। इसी छंद में श्री. मतिराम और भूपण के अपने अपने वंश परिचय मगर नरेश फतेह साहि और मित्र साहि बुंदेला से यह अवश्य मानना पडेगा कि मतिराम और के पुत्र स्वरूपसिंह की प्रशंसा धर्तमान काल में भूपण कदापि सहोदर बधु न थे, बल्कि एक वंश की है। इससे प्रतीत होता है कि छंदसार पिंगल के भी न थे। बनाते समय इनका आवागमन फतह साहि और भूपण और मतिराम दोनों को धीर रस की स्वरूपसिंह दोनों के यहाँ था | हिंदी नवरत्न कविता प्रभावशालिनी और प्रोजस्खनी होती है। में जो यह लिखा है कि छद सार पिंगल शंभूनाथ फिर भी यही प्रतीत होता है भूपण की कविता की सोलंकी के पाश्रय में लिखा और उन्हीं के नाम छाप मतिराम की कविता पर पड़ी है। जिन्होंने समर्पित किया है,वह अशुद्ध प्रतीत होता है। और शिवराज भूषण और ललितललाम दोनों को ध्यान- यह वृत कौमुदी ग्रंथ भी कुरीच (कोच) और | पूर्वक पढ़ा है, वे यह बात अवश्य मानेंगे। कम कौडार के जागीरदार झुंदेला के पुत्र स्वरूप- से कम इस लेख में वृत्तकौमुदी से उद्धृत छंदो सिंहा को समर्पित किया है। से तो इसी अनुमान की पुष्टि होती है

  • देवो मृत्तकौमुदी से उद्धृत छंद ।

जय यर निश्चित हो गया कि भूषण भौर मति- +बुरेसंद की गई तवारीख पृ. ३ । राम सहोदर बंधु नहीं थे, तय स्वभावतः यह प्रम